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5 passions), saleshya (with soul-complexion) and aleshya (without soul. 4
complexion; Ayogi Kevalis and Siddhas are aleshya), jnani (with righteousness) and ajnani (without righteousness), sakaropayoga yukta (with an inclination towards right knowledge) and anakaropayoga yukta (with an inclination towards right perception/faith), aharak (having intake) and anaharak (having no intake), bhaashak (with fully developed
faculty of speech) and abhaashak (without fully developed faculty of 41 speech) and sashariri (with a body) and ashariri (liberated from the body). म मरण-पद MARAN-PAD (SEGMENT OF DEATH)
४११. दो मरणाई समणेणं भगवया महावीरेणं समणाणं णिग्गंथाणं णो णिच्चं वण्णियाइं णो, णिच्चं कित्तियाई णो णिच्चं बुइयाइं णो णिच्चं पसत्थाई णो णिच्चं अब्भणुण्णायाई भवंति, तं ॐ जहा-वलयमरणे चेव, वसट्टमरणे चेव (१)। ४१२. एवं णियाणमरणे चेव तत्भवमरणे चेव (२),
गिरिपडणे चेव, तरुपडणे चेव (३), जलप्पवेसे चेव, जलणप्पवेसे चेव (४), विसभक्खणे चेव,5 ॐ सत्थोवाडणे चेव (५)। ४१३. दो मरणाइं समणेणं भगवया महावीरेणं समणाणं णिग्गंथाणं णो . मणिच्चं वण्णियाइं जाव पसत्थाई णो णिच्चं अब्भणुण्णायाइं भवंति। कारणे पुण अप्पडिकुट्ठाई, तं,
म जहा-वेहाणसे चेव, गिद्धपढे चेव (६)। ४१४. दो मरणाई समणेणं भगवया महावीरेणं समणाणं मणिग्गंथाणं जाव बुइयाइं णिच्चं पसत्थाई णिच्चं अब्भणुण्णायाइं भवंति, तं जहा-पाओवगमणे चेव, 9 भत्तपच्चक्खाणे चेव (७)। ४१५. पाओवगमणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा–णीहारिमे चेव, 5 + अणीहारिमे चेव। णियमं अपडिकम्मे (८)। ४१६. भत्तपच्चक्खाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा卐 णीहारिमे चेव, अणीहारिमे चेव। णियमं सपडिकम्मे (९)। ॐ ४११. श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए ये दो प्रकार के मरण श्रमण भगवान महावीर ने कभी भी वर्णित, म कीर्तित, उक्त, प्रशंसित और अभ्यनुज्ञात नहीं किये हैं-वलन्मरण और वशार्तमरण (१)। ४१२. इसी
प्रकार निदानमरण और तद्भवमरण (२), गिरिपतनमरण और तरुपतनमरण (३), जल-प्रवेशमरण 5 और अग्नि-प्रवेशमरण (४), विष-भक्षणमरण और शस्त्रावपाटनमरण (५)। ४१३. किन्तु कारण- 5
विशेष होने पर वैहायस और गिद्धपट्ठ (गृद्धस्पृष्ट) (६) ये दो मरण अभ्यनुज्ञात (स्वीकृत) हैं। ४१४. ॐ श्रमण भगवान महावीर ने श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए दो प्रकार के मरण सदा वर्णित, यावत् अभ्यनुज्ञात म किये हैं-प्रायोपगमनमरण और भक्तप्रत्याख्यानमरण (७)। ४१५. प्रायोपगमनमरण दो प्रकार
का है-निर्दारिम और अनिर्हारिम। प्रायोपगमनमरण नियमतः अप्रतिकर्म होता है (८)। ॐ ४१६. भक्तप्रत्याख्यानमरण दो प्रकार का है-निर्दारिम और अनिर्हारिम। भक्तप्रत्याख्यानमरण नियमतः क सप्रतिकर्म होता है (९)। 41 411. Shraman Bhagavan Mahavir has never said two kinds of death $1 to be generally mentionable (varnit), praiseworthy (kirtit), recountable
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由乐听听听听听听听 $ 555555555555555555555 5 5FFF 555 5 55 5 55555555
| स्थानांगसूत्र (१)
(158)
Sthaananga Sutra (1) |
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