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4 (ukta), noble (prashast) and permissible (abhyanujnat)-valan maran
and vashart maran (1). 412. Same is true for-nidan maran and tadbhav maran (2), giripatan maran and tarupatan maran (3), jalapravesh maran and agnipravesh maran (4), vishabhakshan maran and
shastravapatan maran (5). 413. However under special circumstances f two kinds of death are permissible--vaihayas maran and griddhasprisht
maran (6). 414. Shraman Bhagavan Mahavir has always said two kinds fi of death to be generally mentionable (varnit),... and so on up to... and
permissible (abhyanujnat)-prayopagaman maran and bhaktapratyakhyan maran (7). 415. Prayopagaman maran is of two
kinds-nirharim and anirharim. Prayopagaman maran is by rule 5 apratikarma (devoid of physical activity) (8). 416. Bhaktapratyakhyan Fimaran is of two kinds—nirharim and anirharim. Bhaktapratyakhyan
maran is by rule sapratikarma (with physical activity) (9). - विवेचन-मरण दो प्रकार के होते हैं-अप्रशस्तमरण और प्रशस्तमरण। कषायावेशपूर्वक जो मरण म होता है वह अप्रशस्त है और कषायावेश बिना समभावपूर्वक शरीरत्याग प्रशस्तमरण है। अप्रशस्तमरण - के वलन्मरण आदि अनेक प्रकार हैं। विशेष शब्दों का स्पष्टीकरण इस प्रकार है
(१) वलन्मरण-परिषहों से पीड़ित या अधीर होने पर संयम छोड़कर मरना। वशार्तमरण-इन्द्रियविषयों के वशीभूत होकर मरना।
(२) निदानमरण-ऋद्धि, भोगादि की इच्छा करके मरना। तद्भवमरण-वर्तमान भव की ही आयु बाँधकर मरना।
(३) गिरिपतनमरण-पर्वत से गिरकर मरना। तरुपतनमरण-वृक्ष से गिरकर मरना।
(४) जल-प्रवेशमरण-अगाध जल में प्रवेश कर या नदी में बहकर मरना। अग्नि-प्रवेशमरण-जलती अग्नि में प्रवेश कर मरना।
(५) विष-भक्षणमरण-विष खाकर मरना। शस्त्रावपाटनमरण-शस्त्र से घात कर मरना।
(६) वैहायसमरण-गले में फाँसी लगाकर मरना। गृद्धस्पृष्टमरण-बृहत्काय वाले हाथी आदि जानवरों के मृत शरीर में प्रवेश कर मरना। इस प्रकार मरने से गिद्ध आदि पक्षी उस शव के साथ मरने वाले के शरीर को भी नोंच-नोंचकर खा डालते हैं।
(७) अपने सामर्थ्य को देखकर अनशनधारी व्यक्ति संस्तारक पर जिस रूप में पड़ जाता है, उसे फिर बदलता नहीं है, किन्तु कटे हुए वृक्ष के समान निश्चेष्ट ही पड़ा रहता है, इस प्रकार से प्राण त्याग करने को प्रायोपगमनमरण कहते हैं। इसे स्वीकार करने वाला व्यक्ति न स्वयं अपनी वैयावृत्त्य करता है
और न दूसरों से ही कराता है। इसी से उसे अप्रतिकर्म अर्थात् शारीरिक प्रतिक्रिया से रहित कहा है। किन्तु भक्तप्रत्याख्यानमरण सप्रतिकर्म होता है।
| द्वितीय स्थान
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Second Sthaan
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