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________________ 55555 55555555)))))555555 गागागाग चतुर्थ उद्देशक FOURTH LESSON -.-.-.-.- Haitita- JIVAJIVA-PAD (SEGMENT OF THE LIVING AND THE NON-LIVING) ___३८७. समयाति वा आवलियाति वा जीवाति या अजीवाति या पवुच्चति। ३८७. समय और आवलिका, ये जीव भी कहे जाते हैं और अजीव भी कहे जाते हैं। 387. Samaya and Avalika are called jiva (the living) as well as ajiva (the non-living). ३८८. आणापाणूति वा थोवेति वा जीवाति या अजीवाति या पवुच्चति। ३८९. खणाति वा लवाति वा जीवाति या आजीवाति या पवुच्चति। एवं-मुत्ताति वा अहोरत्ताति वा पक्खाति वा मासाति वा उडूति वा अयणाति वा संवच्छराति वा जुगाति वा वाससयाति वा वाससहस्साइ वा वाससतसहस्साइ वा वासकोडीइ वा पुव्वंगाति वा पुवाति वा तुडियंगाति वा तुडियाति वा अडडंगाति के वा अडडाति वा अववंगाति वा अववाति वा हूहूअंगाति वा हूहूयाति वा उप्पलंगाति वा उप्पलाति वा पउमंगाति वा पउमाति वा णलिणंगाति वा णलिणाति वा अत्थणिकुरंगाति वा अत्थणिकुराति वा अउअंगाति वा अउआति वा णउअंगाति वा पउआति वा पउतंगाति वा पउताति वा चूलियंगाति वा चूलियाति वा सीसपहेलियंगाति वा सीसपहेलियाति वा पलिओवमाति वा सागरोवमाति वा ओसप्पिणीति वा उस्सप्पिणीति वा-जीवाति या अजीवाति या पवुच्चति। इसी प्रकार-३८८. आनप्राण और स्तोक। ३८९. क्षण और लव, मुहूर्त और अहोरात्र, पक्ष और मास, ऋतु और अयन, संवत्सर और युग, वर्षशत और वर्षसहस्र, वर्षशतसहस्र और वर्षकोटि, पूर्वांग और पूर्व, त्रुटितांग और त्रुटित, अडडांग और अडड, अववांग और अवव, हूहूकांग और हूहूक, उत्पलांग और उत्पल, पद्मांग और पद्म, नलिनांग और नलिन, अर्थनिकुरांग और अर्थनिकुर, अयुतांग और अयुत, नयुतांग और नयुत, प्रयुतांग और प्रयुत, चूलिकांग और चूलिका, शीर्षप्रहेलिकांग और शीर्षप्रहेलिका, पल्योपम और सागरोपम, अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी, ये सभी जीव भी कहे जाते हैं और अजीव भी कहे जाते हैं। In the same way all the following (units of time) are called jiva (the living) as well as ajiva (the non-living) 388. Aan-pran and Stoka 389. Kshana and Lava, Muhurt and Ahoratra, Paksha and Maas, Ritu and Ayan, Samvatsar and Yug, Varshashat and Varshasahasra, Varshashatsahasra and Varshakoti, Purvanga and Purva, Trutitanga and Trutit, Adadanga and 4 845555555555555555555555)555555555555555555555 द्वितीय स्थान (147) Second Sthaan Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.002905
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2004
Total Pages696
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_sthanang
File Size21 MB
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