________________
)))))))))))5555555555555555555555555555555
89555555555555555555555555555555558
genus or state of body for more than one birth) and bhavayushya (birth 4 or genus-specific life span; life span of a being having no continued
reincarnation in the same genus). 263. Two kinds of beings have + addhvayushya-human beings and five sensed animals. 264. Two kinds
of beings have bhavayushya-divine beings and infernal beings. 卐 विवेचन-जो जीव लगातार कई जन्मों तक एक ही जाति या पर्याय में उत्पन्न होता रहता है, उसकी 5
आयु को अद्भवायुष्य अथवा कायस्थिति कहा गया है। जैसे–मनुष्य मरकर पुनः मनुष्य पर्याय में उत्पन्न हो फ़ सकता है। जिस जाति में जीव उत्पन्न होता है, उसके आयुष्य को भवायुष्य अथवा भवस्थिति कहा गया , + है। देव और नारक जीव आयुष्य पूर्ण कर पुनः सीधा उसी भव में उत्पन्न नहीं होता। पानी, अग्नि,
वायुकाय के जीव अपनी-अपनी योनि में लगातार असंख्यात जन्म धारण कर सकते हैं। के + वनस्पतिकायिक जीव वनस्पति योनि में निरन्तर अनन्त भव धारण कर सकता है।
Elaboration-The life span of a being having continued reincarnation in same genus or state of body for more than one birth is called addhvayushya (state-specific life span) and this phenomenon is called kaya sthiti (period of existence in state of body). For example human beings can reincarnate as human beings again and again. The life span of a being born in a particular genus and having no scope of continued reincarnation in the same genus is called bhavayushya (birth or genusspecific life span) and this phenomenon is called bhava sthiti (state of birth or genus). For example after completing their life span, divine and infernal beings never reincarnate in the same genus. Water-bodied, firebodied and air-bodied beings can reincarnate continuously in the same genus for innumerable times. Plant-bodied beings can reincarnate continuously in the same genus for infinite times. कर्म-पद KARMA-PAD (SEGMENT OF KARMA)
२६५. दुविहे कम्मे पण्णत्ते, तं जहा-पदेसकम्मे चेव, अणुभावकम्मे चेव। २६६. दो अहाउयं पालेंति, तं जहा-देवच्चेव, णेरइयच्चेव। २६७. दोण्हं आउय-संवट्टए पण्णत्ते, तं जहा-मणुस्साणं
चेव, पंचेन्दियतिरिक्खजोणियाणं चेव। म २६५. कर्म दो प्रकार का होता है-प्रदेश कर्म (जिस कर्म के प्रदेशों का ही वेदन होता है, रस का
नहीं अर्थात् कर्म उदित होकर फलानुभूति के बिना क्षीण हो जाये), और अनुभाव कर्म (जिस कर्म का के फल सुख-दुःख की अनुभूति के साथ भोगा जाता है)। २६६. दो यथायु (पूर्णायु) का पालन करते हैं
देव और नारक। २६७. मनुष्यों का और पंचेन्द्रियतिर्यग्योनिक, दो का आयुष्य संवर्तक होता है। ॐ (तात्पर्य यह है कि मनुष्य और तिर्यंच दीर्घकालीन आयुष्य को अल्पकाल में भी भोग लेते हैं।)
q听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 55555555555555555555
| स्थानांगसूत्र (१)
(114)
Sthaananga Sutra (1)
ब
步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org