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__pratima. 245. Pratima is of two kinds-bhadraa and subhadraa.
246. Pratima is of two kinds-mahabhadraa and sarvatobhadraa. 247. Pratima is of two kinds-kshudrak moak-pratima and mahati moak-pratima. 248. Pratima is of two kinds-yavamadhyachandra
pratima and vajramadhyachandra-pratima. म विवेचन-आत्मशुद्धि के लिए जो विशिष्ट साधना की जाती है उसे यहाँ 'प्रतिमा' कहा गया है। यह
साधना की विविध पद्धतियाँ हैं। श्रावकों की ग्यारह और साधुओं की बारह प्रतिमाएँ प्रसिद्ध हैं। प्रस्तुत 卐 छह सूत्रों के द्वारा साधुओं की बारह प्रतिमाओं का दो-दो के रूप में प्रतिपादन किया गया है। इनका म अर्थ इस प्रकार है
(१) समाधि प्रतिमा-मन के समस्त विक्षेपों को दूर कर चित्तवृत्तियों को शुभ ध्यान में स्थिर करना।
(२) उपधान प्रतिमा-उपधान का अर्थ है तपस्या। श्रावकों की ग्यारह और साधुओं की बारह म प्रतिमाओं में से अपनी शक्ति के अनुसार उनकी साधना करना उपधान प्रतिमा है।
(३) विवेक प्रतिमा-आत्मा और अनात्मा का भेद-चिन्तन करना, स्व और पर का भेद-ज्ञान म करना। इससे हेय-उपादेय का विवेक-ज्ञान प्रकट होता है।
(४) व्युत्सर्ग प्रतिमा-विवेक प्रतिमा के द्वारा जिन वस्तुओं को हेय अर्थात् छोड़ने योग्य जाना है, म उनका त्याग करना।
(५) भद्रा प्रतिमा-पूर्व, दक्षिण, पश्चिम और उत्तर-इन चारों दिशाओं में क्रमशः चार-चार प्रहर तक कायोत्सर्ग करना। यह प्रतिमा दो दिन-रात में दो उपवास के द्वारा सम्पन्न होती है।
(६) सुभद्रा प्रतिमा-इसकी साधना भद्रा प्रतिमा से उत्कृष्ट सम्भव है। टीकाकार के समय में भी इसकी साधना विधि विच्छिन्न या अज्ञात हो गई लगती है।
(७) महाभद्रा प्रतिमा-चारों दिशाओं में क्रम से एक-एक अहोरात्र तक कायोत्सर्ग करना। यह + प्रतिमा चार दिन-रात में चार दिन के उपवास के द्वारा सम्पन्न होती है।
(८) सर्वतोभद्र प्रतिमा-इस प्रतिमा की आराधना में चारों दिशाओं, चारों विदिशाओं तथा ऊर्ध्व ॐ दिशा और अधोदिशा-इन दसों दिशाओं में कम से कम एक-एक अहोरात्र तक कायोत्सर्ग किया जाता म है। यह प्रतिमा दस दिन के उपवास से दस दिन-रात में पूर्ण होती है। म (९) क्षुद्रक-मोक प्रतिमा-'मोक' का अर्थ प्रस्रवण (पेशाब) है। इस प्रतिमा का साधक शीत या उष्ण
ऋतु के प्रारम्भ में ग्राम से बाहर किसी एकान्त स्थान में जाकर और भोजन का त्याग कर प्रातःकाल ॐ सर्वप्रथम किये गये प्रस्रवण का पान करता है। यह प्रतिमा यदि भोजन करके प्रारम्भ की जाती है तो छह 5 दिन के उपवास से सम्पन्न होती है और यदि भोजन न करके प्रारम्भ की जाती है तो सात दिन के - उपवास से सम्पन्न होती है। इस प्रतिमा की साधना के तीन लाभ बतलाए गये हैं-(१) सिद्ध होना, म (२) महर्द्धिक देवपद पाना, और (३) शरीर रोगमुक्त होकर कनक वर्ण हो जाना। व्यवहारसूत्र, उद्देशक
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स्थानांगसूत्र (१)
(108)
Sthaananga Sutra (1) 步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步牙牙牙牙%%%%%%%%
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