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फ९ में इसकी साधना पद्धति का वर्णन है । व्यवहारभाष्य में प्रतिमा पालन के बाद आहार ग्रहण की
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विस्तृत विधि का वर्णन भी है। वर्तमान में स्व-मूत्र चिकित्सा पर जो अनेकानेक अनुसंधान व प्रयोग हो रहे हैं उस सन्दर्भ में यह प्रतिमा विशेष महत्त्व रखती है।
(१०) महती - मोक प्रतिमा- इसकी विधि क्षुद्रक - मोक प्रतिमा के समान ही है । अन्तर केवल इतना है फ्र कि जब वह खा-पीकर स्वीकार की जाती है, तब वह सात दिन के उपवास से पूरी होती है और यदि 5 बिना खाये -पीये स्वीकार की जाती है तो आठ दिन के उपवास से पूरी होती है ।
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(११) यवमध्य - चन्द्र प्रतिमा - जिस प्रकार यव (जौ) का मध्य भाग मोटा और दोनों ओर के भाग पतले होते हैं, उसी प्रकार इस साधना में मध्य में सबसे अधिक कवल (ग्रास) ग्रहण और आदि - अन्त में सबसे कम ग्रहण किया जाता है। इसकी विधि यह है - इस प्रतिमा का साधक साधु शुक्लपक्ष की प्रतिपदा को एक कवल आहार लेता है । पुनः तिथि के अनुसार एक-एक कवल आहार बढ़ाता हुआ शुक्लपक्ष की पूर्णिमा को पन्द्रह कवल आहार लेता है। पुनः कृष्णपक्ष की प्रतिपदा को १४ कवल आहार लेकर क्रम से एक-एक कवल घटाते हुए अमावस्या को उपवास करता है। चन्द्रमा की एक-एक कला शुक्लपक्ष में जैसे बढ़ती है और कृष्णपक्ष में एक-एक घटती है उसी प्रकार इस प्रतिमा में कवलों की संख्या वृद्धि और हानि होने से इसे यवमध्य चन्द्र प्रतिमा कहा है।
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(१२) वज्रमध्य - चन्द्र प्रतिमा - यह यवमध्य चन्द्र प्रतिमा के विपरीत क्रम से चलती है। जिस प्रकार वज्र का मध्य भाग पतला और आदि-अन्त भाग मोटा होता है, उसी प्रकार जिस साधना में आदि5 अन्त में कवल-ग्रहण अधिक और मध्य में एक भी न हो, उसे वज्रमध्य-चन्द्र प्रतिमा कहते हैं । इसे साधने वाला साधक कृष्णपक्ष की प्रतिपदा को १४ कवल आहार लेकर क्रम से चन्द्रकला के समान एक-एक कवल घटाते हुए अमावस्या को उपवास करता है । पुनः शुक्लपक्ष में प्रतिपदा के दिन एक 5 कवल ग्रहण कर एक-एक कला वृद्धि के समान एक-एक कवल वृद्धि करते हुए पूर्णिमा को १५ कवल आहार ग्रहण करता है । (विस्तृत वर्णन व चित्र देखें - सचित्र अन्तकृद्दशा सूत्र, परिशिष्ट में)
Elaboration-Special practice designed to attain purity of soul is called pratima. This term covers a variety of spiritual practices. More popular among these are the eleven meant for the laity (shravakpratimas) and the twelve meant for the ascetics (sadhu-pratimas). These six aphorism list the twelve practices meant for ascetics in sets of two. These are explained as follows
(1) Samadhi pratima-To remove all perversions of mind and divert all mental activities towards noble and pious meditation.
(2) Upadhan pratima-Upadhan means austerities. To choose one or more from among the eleven shravak-pratimas and twelve sadhupratimas and earnestly practice to the best of one's ability.
द्वितीय स्थान
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Second Sthaan
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