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करता है, भाषा बोलता है, आहार करता है, उसका परिणमन करता है, उसका अनुभव करता है और
उसका उत्सर्ग करता है। २०८. दो स्थानों से देव शब्द सुनता है- शरीर के एक भाग से भी देव शब्दों
को सुनता है और सम्पूर्ण शरीर से भी शब्द सुनता है। इसी प्रकार देव दोनों स्थानों से अवभास करता
है, प्रभास करता है, विक्रिया करता है, प्रवीचार करता है, भाषा बोलता है, आहार करता है, उसका परिणमन करता है, उसका अनुभव करता है और उसका उत्सर्ग करता है।
विवेचन - उक्त सूत्रों में आये अवभास आदि शब्दों का एकदेश तथा सर्वदेश का अन्तर इस प्रकार समझना चाहिए
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206. A soul glows (avabhas) two ways-through a specific part of the body (like a glow worm) and also through the whole body (like a lamp).
207. In the same way a soul does the following two ways-enlighten (prabhas); vikriya (undergo self mutation); praveechar (copulate); speak; eat food, digest it, experience it and excrete it. 208. A dev (divine being) फ्र listens sounds from two places-through a specific part of the body
and
also through the whole body. In the same way a deu (divine being) does the following activities two ways—enlightening (prabhas); vikriya (undergoing self mutation); praveechar (copulating ) ; speaking, eating food, digesting it, experiencing it and excreting it.
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यशः कीर्ति से चमकना एकदेश से तथा आन्तरिक ज्ञान शक्ति से चमकना सर्वभाग से चमकना है। क्षयोपशमिक ज्ञान से प्रकाश करना एकदेश से तथा क्षायिक ज्ञान से प्रकाश करना सर्वभाग से प्रकाश करना है ।
शरीर के एक अंग से वैक्रिय विकुर्वणा करना एकदेश से तथा सर्वांग से प्रति पूर्ण शरीर बनाना सर्वदेश से ।
जिह्वा से बोलना या अस्पष्ट बोलना एकदेश से तथा शरीर के सभी स्थानों से शब्दोच्चार करना सर्वभाग से ।
मुख से व इन्जेक्शन आदि द्वारा आहार ग्रहण करना एकदेश से तथा ओजाहार एवं रोमाहार करना सर्वभाग से ।
रोगी अवस्था में भोजन का परिणमन एकदेश से होता है तथा पूर्ण नीरोग व्यक्ति सम्पूर्ण शरीर से परिणमन करता है।
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शरीर के एक भाग विशेष (आँख, कान आदि) से पीड़ा का वेदन करना एकदेश से तथा शीत
ज्वर, दाह ज्वर आदि के रूप में समूचे शरीर से वेदना भोगना सर्व से।
शरीर के एक भाग से ( मल-मूत्र की तरह) पुद्गलों का त्याग करना एकदेश से तथा पसीने आदि के रूप में पुद्गल परित्याग करना सर्व से। (हिन्दी टीका, पृष्ठ २०२ )
स्थानांगसूत्र (१)
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Sthaananga Sutra (1)
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