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555555555555555555 body. 203. A soul smells odours two ways-through a specific part of the body (nose) and also through the whole body. 204. A soul tastes flavours two ways-through a specific part of the body (tongue) and also through the whole body. 205. A soul experiences touch in two ways-through a specific part of the body (skin) and also through the whole body.
विवेचन-टीकाकार ने 'एक देश से सुनता है' का अर्थ 'एक कान की श्रवण शक्ति नष्ट हो जाने पर म दूसरे ही कान से सुनता है' और सर्व का अर्थ 'दोनों कानों से सुनता है'-ऐसा किया है। यही बात नेत्र, रसना आदि के विषय में भी जानना चाहिए। साथ ही यह भी लिखा है कि जिस आत्मा को संभिन्नश्रोतोलब्धि प्राप्त होती है, वह एक ही इन्द्रिय से सब इन्द्रियों का काम कर सकता है, अर्थात् वह जीव समस्त इन्द्रियों से भी अर्थात् समूचे शरीर से सुनता है। इसी प्रकार रूप, रस, गन्ध और स्पर्श का ज्ञान किसी भी एक इन्द्रिय से और सम्पूर्ण शरीर से कर सकता है।
आवश्यकचूर्णि के अनुसार संभिन्नश्रोतोलब्धि सम्पन्न आत्मा शरीर के किसी भी अंगोपांग से सब विषयों का ग्रहण कर सकता है। (पृष्ठ ७०)
Elaboration—The commentator (Tika) has interpreted desh (part) hearing as 'to hear from one ear and not both when one of the ears is damaged', and sarva (complete) hearing as 'to hear from both ears'. This is true for other sense organs as well. At the same time it has also been mentioned that a soul endowed with sambhinna-shrot-labdhi can use any one of the sense organ for the work of all other sense organs. In other words it has the capacity to hear from his whole body. In this context he can receive information related to all sense organs, namely sound, form, taste, smell and touch either through one organ or through the whole body.
According to Avashyak Churni a soul endowed with sambhinna-shrotlabdhi can acquire all sensual information through any part of his body. (p. 70)
२०६. दोहिं ठाणेहिं आया ओभासति, तं जहा-देसेण वि आया ओभासति, सव्वेण वि आया ओभासति। २०७. एवं-पभासति, विकुबति, परियारेति, भासं भासति, आहारेति, परिणामेति, वेदेति, णिज्जरेति। २०८. दोहिं ठाणेहिं देवे सदाइं सुणेति, तं जहा-देसेण वि देवे सद्दाइं सुणेति, सब्ण वि देवे सद्दाइं सुणेति जाव णिज्जेरति।
२०६. दो स्थानों से आत्मा-अवभास (प्रकाश) करता है-खद्योत के समान शरीर के एक भाग से भी आत्मा अवभास करता है और प्रदीप की तरह समूचे शरीर से भी अपभास करता है। २०७. इसी प्रकार दो स्थानों से आत्मा प्रभास (विशेष प्रकाश) करता है, विक्रिया करता है, प्रवीचार (मैथुन सेवन)
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द्वितीय स्थान
(97)
Second Sthaan
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