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(3) Adho-avadhi-jnani knows and sees middle world through avadhi. jnana with or without creating transmutable body.
१९९. दोहिं ठाणेहिं आया उड्डलोगं जाणइ पासइ, तं जहा-(१) विउब्बितेणं चेव आया उड्डलोगं जाणइ पासइ, (२) अविउवितेणं चेव अप्पाणेणं आया उड्डलोगं जाणइ पासइ, (३) आहोहि विउब्बियाविउब्बितेणं चेव अप्पाणेणं आया उड्डलोगं जाणइ पासइ।
१९९. दो प्रकार से आत्मा ऊर्ध्वलोक को जानता-देखता है-(१) वैक्रिय शरीर का निर्माण करके, तथा (२) वैक्रिय शरीर का निर्माण किये बिना भी अवधिज्ञान से ऊर्ध्वलोक को जानता-देखता है। (३) अधोवधिज्ञानी दोनों प्रकार से ऊर्ध्वलोक को जानता-देखता है।
199. A soul knows and sees Urdhva lok (upper world) in two ways(1) A soul knows and sees upper world through avadhi-jnana by creati transmutable body. (2) A soul knows and sees upper world through
avadhi-jnana even without creating transmutable body. (3) AdhoF avadhi-jnani knows and sees upper world through avadhi-jnana with or without creating transmutable body.
२००. दोहिं ठाणेहिं आया केवलकप्पं लोगं जाणइ पासइ, तं जहा-(१) विउवितेणं चेव अप्पाणेणं आया केवलकप्पं लोग जाणइ पासइ, (२) अविउवितेणं चेव अप्पाणेणं आया केवलकप्पं लोगं जाणइ पासइ, (३) आहोहि विउवियाविउवितेणं चेव अप्पाणेणं आया केवलकप्पं लोगं जाणइ पासइ। __ २००. दो प्रकार से आत्मा सम्पूर्ण लोक को जानता-देखता है-(१) वैक्रिय शरीर का निर्माण करके, तथा (२) वैक्रिय शरीर का निर्माण किये बिना भी अवधिज्ञान से सम्पूर्ण लोक को जानतादेखता है। (३) अधोवधिज्ञानी दोनों प्रकार से सम्पूर्ण लोक को जानता-देखता है।
200. A soul knows and sees Sampurna lok (the whole occupied space) in two ways—(1) A soul knows and sees the whole occupied space through avadhi-jnana by creating transmutable body. (2) A soul knows si and sees the whole occupied space through avadhi-jnana even without creating transmutable body. (3) Adho-avadhi-jnani knows and sees the whole occupied space through avadhi-jnana with or without creating transmutable body.
विवेचन-इन सूत्रों में आत्मा की तपोयोगजनित शक्ति तथा लोक को देखने-जानने की ज्ञान शक्ति का उल्लेख है। जब किसी दिशा में रहे हुए द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की जानकारी के लिए आहारकलब्धि
और वैक्रियलब्धि को व्यक्त करके आहारक व वैक्रिय शरीर की रचना की जाती है, वह रचना समुद्घात से होती है। जिनको सुस्पष्ट ज्ञान होता है, वे बिना समुद्घात किये भी जान रहे हैं। जहाँ मौलिक शरीर गमन
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| द्वितीय स्थान
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