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मागमगानाana
निरन्तर उत्पन्न होने वाले, जैसे पाँच स्थावर) और परंपरोत्पन्न (बीच-बीच में अन्तर से उत्पन्न होने 卐 वाले)। १७९. (३) गति समापन्नक-(एक शरीर को छोड़कर उत्पत्तिस्थान को जाने वाले) और अगति
समापन्नक (अपने-अपने भव में स्थित)। १८०. (४) प्रथम समयोपपन्न-(जहाँ उत्पन्न हुए पहला समय ॐ हुआ है) और अप्रथम समयोपपन्न-(जहाँ उत्पन्न हुए अनेक समय हो चुके हैं)। १८१. (५) आहारकम (प्रति समय आहार ग्रहण करने वाले), अनाहारक-(विग्रह गति से भवान्तर में जाते समय)।'
१८२. (६) उच्छ्वासक-(श्वासोच्छ्वासपर्याप्ति से पर्याप्त), नोउच्छ्वासक-(जिसकी क श्वासोच्छ्वासपर्याप्ति पूर्ण नहीं हुई है)। १८३. (७) सइन्द्रिय-इन्द्रियों वाला), नोइन्द्रिय-(जिनकी
इन्द्रियपर्याप्ति अभी पूर्ण नहीं हुई है)। १८४. (८) पर्याप्तक-अपर्याप्तक। १८५. (९) संज्ञी (विकलेन्द्रिय जीवों को छोड़कर पंचेन्द्रिय दण्डकों में वाणव्यन्तर पर्यन्त मनःपर्याप्ति वाले) और असंज्ञी। ॐ
१८६. (१०) भाषक-(भाषापर्याप्ति से पर्याप्त), अभाषक-(जिनकी भाषापर्याप्ति अभी अपूर्ण है) ऊ एकेन्द्रिय जीवों को छोड़कर शेष सभी में दोनों भेद पाये जाते हैं। १८७. (११) सम्यग्दृष्टि-मिथ्यादृष्टि।
१८८. (१२) परित्तसंसारी-(जिनका संसार भ्रमण सीमित है), अपरित्तसंसारी-(जिनका भव भ्रमण । अनन्त है)। १८९. (१३) संख्येय कालस्थितिक-(संख्यात वर्षायुष्क वाले जैसे एकेन्द्रिय और म विकलेन्द्रिय), असंख्येय कालस्थितिक-एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय एवं वाणव्यन्तर को छोड़कर। १९०. * (१४) सुलभबोधिक-(जिन्हें धर्म की प्राप्ति सुलभ है), दुर्लभबोधिक। १९१. (१५) कृष्णपाक्षिक5 अभव्यात्मा (अनन्त काल तक संसार भ्रमण करने वाले) शुक्लपाक्षिक-(भव्यात्मा मोक्षगामी)। १९२. ॐ
(१६) चरम-(एक भव लेकर मोक्ष जाने वाले) और अचरम। नैरयिकों से वैमानिक तक सभी दण्डकों में उक्त भेद जानना चाहिए। ___177. (1) Nairayiks are of two kinds-bhavasiddhik (worthy of being liberated) and abhavasiddhik (unworthy of being liberated). The same is true for all dandaks (places of suffering) up to Vaimaniks (celestial vehicle dwelling gods). In the same way all beings from nairayiks to Vaimaniks are of two kinds—178. (2) Anantarotpanna (being born continuously without a gap) and paramparotpanna (being born with a gap of time). 179. (3) Gati samapannak (in process of reincarnating from one genus
to another) and agati samapannak (living in their specific genus). f 180. (4) Pratham samayopapanna (having spent just one Samaya from s being born in a specific genus) and apratham samayopapanna (having
spent more than one Samaya from being born in a specific genus). 181. (5) Aharak (having intake every moment) and anaharak (having no intake; this happens during the process of reincarnating from one place to another). 182. (6) Uchchhavasak (with fully developed capacity of breathing) and no-uchchhavasak (without fully developed capacity of breathing). 183. (7) Sa-indriya (with fully developed sense organs) and no
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| द्वितीय स्थान
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