________________
१०२. सुयणिस्सिए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-अत्थोग्गहे चेव, वंजणोग्गहे चेव। १०३. असुयणिस्सिए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-अत्थोग्गहे चेव, वंजणोग्गहे चेव। १०४. सुयणाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-अंगपविढे चेव, अंगबाहिरे चैव। १०५. अंगबाहिरे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-आवस्सए चेव, आवस्सयवतिरित्ते चेव। १०६. आवस्सयवतिरित्ते दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-कालिए चेव, उक्कालिए चेव।
१००. परोक्ष ज्ञान दो प्रकार का है-आभिनिबोधिक ज्ञान और श्रुत ज्ञान। १०१. आभिनिबोधिक ज्ञान दो प्रकार का है- श्रुतनिश्रित (श्रुत ज्ञान से सम्बन्धित) और अश्रुतनिश्रित (बिना शास्त्र पढ़े सहज बुद्धि से प्राप्त ज्ञान)। १०२. श्रुतनिश्रित ज्ञान दो प्रकार का है-अर्थावग्रह (सामान्य ज्ञान। यह सभी इन्द्रियों से होता है) और व्यंजनावग्रह (किंचित् मात्र ज्ञान। यह चक्षु इन्द्रिय और मन को नहीं होता)। १०३. अश्रुतनिश्रित ज्ञान दो प्रकार का है-अर्थावग्रह और व्यंजनावग्रह। १०४. श्रुत ज्ञान दो प्रकार का है-अंगप्रविष्ट (द्वादशांग) और अंगबाह्य। १०५. अंगबाह्य श्रुत ज्ञान दो प्रकार का है-आवश्यक
और आवश्यकव्यतिरिक्त। १०६. आवश्यकव्यतिरिक्त दो प्रकार का है-कालिक श्रुत (दिन और रात के प्रथम और अन्तिम प्रहर में पढ़ा जाने वाला) और उत्कालिकश्रुत (अकाल के सिवाय सभी प्रहरों में पढ़ा जाने वाला)। (ज्ञान का विस्तृत वर्णन सचित्र नन्दीसूत्र, पृष्ठ १६१ से ३७५ पर देखें) ____100. Paroksha-jnana (knowledge acquired through sense organs) is of two kinds-abhinibodhik-jnana (sensory knowledge or that acquired by means of five sense organs and the mind) and shrut-jnana (scriptural knowledge). 101. Abhinibodhik-nana (sensory knowledge) is of two kinds-shrut-nishrit (acquired through scriptures) and ashrut-nishrit (acquired directly and not with the help of scriptures). 102. Shrutnishrit-jnana is of two kinds—arthavagraha (actual knowledge gathered through all sense organs and mind) and vyanjanavagraha (sense organ specific scanty knowledge; this is acquired through sense organs other than eyes and mind). 103. Ashrut-nishrit-jnana is of two kindsarthavagraha and vyanjanavagraha. 104. Shrut-jnana (scriptural knowledge) is of two kinds-Angapravisht (the twelve Angas) and Angabahya (other than twelve Angas). 105. Angabahya shrut-jnana is of two kinds--Avashyak (essentials) and Avashyak vyatirikt (other than essentials). 106. Avashyak vyatirikt is of two kinds-kaalik (to be studied at a specific time; during the first and last quarters of day and night) and utkaalik (to be studied anytime other than the prohibited times. (for detailed discussion about Jnana refer to Illustrated Nandi Sutra, pp 161 to 375)
द्वितीय स्थान
(65)
Second Sthaan
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org