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नोकेवलज्ञान- पद NOKEVAL-JNANA-PAD
(SEGMENT OF KNOWLEDGE OTHER THAN OMNISCIENCE)
९५. णोकेवलणाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - ओहिणाणे चेव, मणपज्जवणाणे चेव । फ्र ९६. ओहिणाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-भवपच्चइए चेव, खओवसमिए चेव । ९७. दोन्हं भवपच्चइए पण्णत्ते, तं जहा- देवाणं चेव, णेरइयाणं चेव । ९८. दोन्हं खओवसमिए पण्णत्ते, 5 तं जहा - मणुस्साणं चेव, पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं चेव । ९९. मणपज्जवणाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - उज्जुमती चैव, विउलमती चेव ।
९५. नोकेवलज्ञान दो प्रकार का है - अवधिज्ञान और मनः पर्यवज्ञान । ९६. अवधिज्ञान दो प्रकार 5 का है - भवप्रत्ययिक (जन्म के साथ उत्पन्न होने वाला) और क्षायोपशमिक (ज्ञानावरणकर्म के क्षयोपशम 5 से, तपस्या आदि गुणों के निमित्त से उत्पन्न होने वाला) । ९७. भवप्रत्ययिक अवधिज्ञान दो गति के फ्र जीवों को होता है-देवताओं को और नारकियों को । ९८. क्षायोपशमिक अवधिज्ञान दो गति में होता फ्र है - मनुष्यों को और पंचेन्द्रियतिर्यग्योनिकों को । ९९. मनः पर्यवज्ञान दो प्रकार का है - ऋजुमति मनः पर्यवज्ञान (मानसिक चिन्तन के पुद्गलों को सामान्य रूप से जानने वाला) तथा विपुलमति मनः पर्यवज्ञान (मानसिक चिन्तन के पुद्गलों की विविध पर्यायों को विशेष रूप से जानने वाला) ।
परोक्ष - ज्ञान- पद PAROKSHA-JNANA-PAD
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95. Nokeval-jnana (knowledge other than omniscience) is of two kinds-avadhi-jnana (extrasensory perception of the physical dimension; 5 something akin to clairvoyance) and manahparyava-jnana (extrasensory perception and knowledge of thought process and thought-forms of other beings, something akin to telepathy). 96. Avadhi-jnana is of two kindsbhava pratyayik (acquired at birth) and kshayopashamik (acquired due to extinction-cum-pacification of knowledge obscuring karmas caused by virtues including austerities). 97. Bhava pratyayik avadhi-jnana manifests in beings of two genuses-devas (divine beings) and naarakiya (infernal beings). 98. Kshayopashamik avadhi-jnana manifests in beings of two genuses-manushya (human beings) and panchendriya tiryaks (five sensed animals). 99. Manahparyava-jnana (extrasensory perception and knowledge of thought process and thought-forms of other beings) is of two kinds—rijumati (limited knowledge of thought forms) and vipulmati (extensive knowledge of various modes of thought forms).
(SEGMENT OF KNOWLEDGE ACQUIRED THROUGH SENSE ORGANS)
स्थानांगसूत्र (१)
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(64)
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१००. परोक्खे णाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-आभिणिबोहियणाणे चेव, सुयणाणे चेव । १०१. आभिणिबोहियणाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - सुयणिस्सिए चेव, असुयणिस्सिए चेव । 5
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Sthaananga Sutra (1)
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