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फ्र अगाराओ अणगारियं पव्वइज्जा, तं जहा- आरंभे चेव, परिग्गहे चेव ( ३ ) । ४४. दो ठाणाई अपरियाणेत्ता आया णो केवलं बंभचेरवासमावसेज्जा, तं जहा- आरंभे चेव, परिग्गहे चेव ( ४ ) । ४५. दो ठाणाई अपरियाणेत्ता आया णो केवलेणं संजमेणं संजमेज्जा, तं जहा- आरंभे चेव, 近 परिग्गहे चेव ( ५ ) । ४६. दो ठाणाई अपरियाणेत्ता आया णो केवलेणं संवरेणं संवरेज्जा, तं जहा5 आरंभे चेव, परिग्गहे चेव ( ६ ) । ४७. दो ठाणाई अपरियाणेत्ता आया णो
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5 केवलमाभिणिबोहियणाणं उप्पाडेज्जा, तं जहा- आरंभे चेव, परिग्गहे चेव ( ७ ) । ४८. दो ठाणाई
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5 अपरियाणेत्ता आया णो केवलं सुयणाणं उप्पाडेज्जा, तं जहा- आरंभे चेव, परिग्गहे चेव ( ८ ) ।
४९. दो ठाणाई अपरियाणेत्ता आया णो केवलं ओहिणाणं उप्पाडेज्जा, तं जहा- आरंभे चेव, 5 परिग्गहे चेव ( ९ ) । ५०. दो ठाणाई अपरियाणेत्ता आया णो केवलं मणपज्जवणाणं उप्पाडेज्जा, तं जहा- आरंभे चेव, परिग्गहे चेव (१०) । ५१. दो ठाणाई अपरियाणेत्ता आया णो केवलं केवलणाणं उप्पाडेज्जा, तं जहा- आरंभे चेव, परिग्गहे चेव ( ११ ) |
४१. आरम्भ और परिग्रह-दो स्थानों को जाने और उनका त्याग किये बिना आत्मा केवल - भाषित धर्म को नहीं सुन पाता ( १ ) । ४२. आरम्भ और परिग्रह-दो स्थानों को जाने और छोड़े बिना आत्मा विशुद्ध बोधि - ( सम्यक् दर्शन) का अनुभव नहीं कर पाता (२) । ४३. आरम्भ और परिग्रह - दो स्थानों को जाने और छोड़े बिना आत्मा मुण्डित होकर घर से ( ममता - मोह छोड़कर) अनगारिता (साधुत्व) को नहीं पाता ( ३ ) । ४४. आरम्भ और परिग्रह-दो स्थानों को जाने और छोड़े बिना आत्मा सम्पूर्ण ब्रह्मचर्यवास को प्राप्त नहीं होता ( ४ ) । ४५. आरम्भ और परिग्रह-दो स्थानों को जाने और छोड़े बिना आत्मा सम्पूर्ण संयम (पंचमहाव्रत रूप धर्म) को ग्रहण नहीं कर पाता (५) । ४६. आरम्भ और परिग्रह-दो स्थानों को जाने और छोड़े बिना आत्मा सम्पूर्ण संवर द्वारा संवृत्त नहीं होता (६) । ४७. आरम्भ और परिग्रह-दो स्थानों को जाने और छोड़े बिना आत्मा विशुद्ध आभिनिबोधिक ज्ञान (निर्मल मतिज्ञान) को प्राप्त नहीं कर पाता (७) । ४८. आरम्भ और परिग्रह-दो स्थानों को जाने और छोड़े बिना आत्मा विशुद्ध श्रुतज्ञान को प्राप्त नहीं कर पाता (८) । ४९. आरम्भ और परिग्रह-दो स्थानों को जाने और छोड़े बिना आत्मा विशुद्ध अवधिज्ञान को प्राप्त नहीं कर पाता ( ९ ) । ५०. आरम्भ और परिग्रह-दो स्थानों को जाने और छोड़े बिना आत्मा विशुद्ध मनःपर्यवज्ञान को प्राप्त नहीं कर पाता (१०) । ५१. आरम्भ और परिग्रह-दो स्थानों को जाने और छोड़े बिना आत्मा विशुद्ध केवलज्ञान को प्राप्त नहीं कर पाता (११) ।
41. Without knowing and abandoning two sthaans (attitudes) a soul is not able to listen to the Sermon of the Omniscient (1), they are-arambh (ill-intent; occupation that causes harm to beings) and parigraha (attachment for possessions). In the same way, without knowing and abandoning arambh and parigraha a soul is not able to-42. experience pure enlightenment (right knowledge ) ( 2 ). 43. tonsure his head and द्वितीय स्थान
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