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1 renounce his household (discarding attachment for his family) to become 卐 a homeless ascetic (anagar) (3). 44. observe complete celibacy (4).
45. embrace complete ascetic-discipline (in the form of five great vows) (5). 46. accomplish complete samvar (stopping of the inflow of karmas)
(6). 47. acquire pure abhinibodhik-jnana or mati-jnana (sensory 5 knowledge or to know the apparent form of things appearing before the
soul by means of five sense organs and the mind) (7). 48. acquire pure shrut-jnana (scriptural knowledge) (8). 49. acquire pure avadhi-jnana (extrasensory perception of the physical dimension; something akin to clairvoyance) (9). 50. acquire pure manahparyav-jnana (extrasensory perception and knowledge of thought process and thought-forms of other beings, something akin to telepathy) (10). 51. acquire pure keval-jnana (omniscience) (11). आरम्भ-परिग्रह-परित्याग पद ARAMBH-PARIGRAHA-PARITYAG-PAD (SEGMENT OF |
ABANDONING OF SINFUL ACTIVITY AND TENDENCY TO POSSESS) ५२. दो ठाणाइं परियाणेत्ता आया केवलिपण्णत्तं धम्मं लभेज सवणयाए, तं जहा-आरंभे चेव, परिग्गहे चेव। ५३. दो ठाणाई परियाणेत्ता आया केवलं बोधिं बुज्झेज्जा, तं जहा-आरंभे चेव,
परिग्गहे चेव। ५४. दो ठाणाइं परियाणेत्ता आया केवलं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइज्जा, म तं जहा-आरंभे चेव, परिग्गहे चेव। ५५. दो ठाणाई परियाणेत्ता आया केवलं बंभचेरवासमावसेज्जा,
तं जहा-आरंभे चेव, परिग्गहे चेव। ५६. दो ठाणाइं परियाणेत्ता आया केवलेणं संजमेणं संजमेज्जा, म तं जहा-आरंभे चेव, परिग्गहे चेव। ५७. दो ठाणाई परियाणेत्ता आया केवलेणं संवरेणं संवरेजा,
तं जहा-आरंभे चेव, परिग्गहे चेव। ५८. दो ठाणाई परियाणेत्ता आया केवलमाभिणिबोहियणाणं उप्पाडेज्जा, तं जहा-आरंभे चेव, परिग्गहे चेव। ५९. दो ठाणाइं परियाणेत्ता आया केवलं सुयणाणं उप्पाडेज्जा, तं जहा-आरंभे चेव, परिग्गहे चेव। ६०. दो ठाणाई परियाणेत्ता आया केवलं ओहिणाणं
उप्पाडेज्जा, तं जहा-आरंभे चेव, परिग्गहे चेव। ६१. दो ठाणाई परियाणेत्ता आया केवलं ॐ मणपज्जवणाणं उप्पाडेज्जा, तं जहा-आरंभे चेव, परिग्गहे चेव। ६२. दो ठाणाइं परियाणेत्ता आया .
केवलं केवलणाणं उप्पाडेज्जा, तं जहा-आरंभे चेव, परिग्गहे चेव। ऊ ५२. आरम्भ और परिग्रह-इन दो स्थानों को जानकर और उनका त्यागकर आत्मा केवलि-भाषित
धर्म को सुन पाता है (१)। ५३. आरम्भ और परिग्रह-इन दो स्थानों को जानकर और त्यागकर आत्मा
इसी प्रकार विशुद्धबोधि को प्राप्त करता है (२)। ५४. आरम्भ और परिग्रह-इन दो स्थानों को जानकर है और त्यागकर आत्मा मुण्डित होकर गृहवास का त्यागकर सम्पूर्ण अनगार अवस्था को पाता है (३)। 5
५५. आरम्भ और परिग्रह-इन दो स्थानों को जानकर और त्यागकर आत्मा सम्पूर्ण ब्रह्मचर्यवास धारण करता है (४)। ५६. आरम्भ और परिग्रह-इन दो स्थानों को जानकर और त्यागकर आत्मा सम्पूर्ण
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स्थानांगसूत्र (१)
(56)
Sthaananga Sutra (1) |
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