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Sutrakritanga (2/2/2); 72 types mentioned in this Sthananga Sutra, and 25 types mentioned in Tattvarth Sutra (6/6). Besides these some descriptions of kriya are also available in Prajnapana Sutra (22) and Bhagavati Sutra. गर्हा-पद GARHA-PAD (SEGMENT OF REPENTANCE)
३८. दुविहा गरिहा पण्णत्ता, तं जहा-मणसा वेगे गरहति, वयसा वेगे गरहति। अहवा, गरहा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-दीहं वेगे अद्धं गरहति, रहस्सं वेगे अद्धं गरहति।
३८. गर्दा (भूल से हुए अशुभ आचरण के प्रति पश्चात्ताप अथवा ग्लानि का भाव) दो प्रकार की है-कुछ लोग मन से गर्दा (अपने पाप की निन्दा) करते हैं (किन्तु वचन से नहीं) और कुछ लोग वचन से गर्दा करते हैं (किन्तु मन से नहीं)। (अथवा इस सूत्र का यह आशय भी निकलता है कि कोई न केवल मन से अपितु वचन से भी गर्दा करते हैं और कोई न केवल वचन से किन्तु मन से भी गर्दा करते है हैं।) गर्दा दो प्रकार की है-कुछ लोग दीर्घकाल (जीवन पर्यन्त या जीवनभर के पापों की) तक गर्दा करते हैं और कुछ लोग अल्पकाल तक (कुछ काल तक किये गये पापों की) गर्दा करते हैं।
38. Garha (remorse and repentance for bad conduct committed out of ignorance) is of two kinds-some people repent mentally (not verbally) and some verbally (not mentally). Another interpretation is that some people repent not just mentally but verbally also and some do so not just verbally but mentally as well. Also garha (remorse and repentance for bad 45 conduct committed out of ignorance) is of two kinds-some people repent for a long period (for sins committed throughout one's lifetime) and some for a short period (for sins committed during a specific short period).
विवेचन-टीकाकार ने मन से गर्दा के सम्बन्ध में प्रसन्नचन्द्र राजर्षि का तथा केवल वचन से गर्दा के के सन्दर्भ में अंगारमर्दक आचार्य का दृष्टान्त उद्धृत किया है। ___Elaboration-The commentator (Tika) has quoted the example of Prasannachandra Rajarshi in connection with mental repentance and that of Angaramardak in connection with verbal repentance. प्रत्याख्यान-पद PRATYAKHYAN-PAD (SEGMENT OF ABSTAINMENT)
__३९. दुविहे पच्चक्खाणे पण्णत्ते, तं जहा-मणसा वेगे पच्चक्खाति, वयसा वेगे पच्चक्खाति। अहवा, पच्चक्खाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-दीहं वेगे अद्धं पच्चक्खाति, रहस्सं वेगे अद्धं ॥ पच्चक्खाति।
३९. प्रत्याख्यान (अशुभ कार्य का त्याग) दो प्रकार का है-कुछ लोग मन से प्रत्याख्यान करते हैं और कुछ लोग वचन से प्रत्याख्यान करते हैं। अथवा प्रत्याख्यान दो प्रकार का है-कुछ लोग दीर्घकालजीवनभर के लिए प्रत्याख्यान करते हैं और कुछ लोग अल्पकाल के लिए प्रत्याख्यान करते हैं।
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द्वितीय स्थान
(53)
Second Sthaan
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