________________
३१. वैदारिणी क्रिया प्रकार की है-जीव-वैदारिणी क्रिया (जीव के विदारण से होने वाली क्रिया) और 5 अजीव-वैदारिणी क्रिया (क्रोध, द्वेषवश अजीव के विदारण से होने वाली क्रिया)। (वृत्तिकार ने विदारण के तीन अर्थ किये हैं-विदारण-फोड़ना, विचारण-द्वयर्थक भाषा बोलना तथा वितारण-कपट ॥ आचरण)।
29. Kriya is of two kinds-ajnapani kriya (act of giving command or preaching to indulge in violence) and vaidarini kriya (act of piercing or tearing something). 30. Ajnapani kriya is of two kinds-jiva-ajnapani kriya (giving command to indulge in violence against a living being) and ajiva-ajnapani kriya (giving command to indulge in violence associated with the non-living or to order to fetch some instrument of violence). 31. Vaidarini kriya is of two kinds-jiva-vaidarini kriya (act of piercing or tearing a living being) and ajiva-vaidarini kriya (act of piercing or tearing something non-living under the influence of anger or aversion). (the commentator (Vritti) has given three meanings of the term veyaran-vidaran = to pierce; vicharan = to speak ambiguous or confusing language; vitaran = to deceive]
३२. दो किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-अणाभोगवत्तिया चेव, अणवकंखवत्तिया चेव। ३३. अणाभोगवत्तिया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-अणाउत्तआइयणता चेव, अणाउत्तपमज्जणता चेव। ३४. अणवकंखणवत्तिया किरिया दविहा पण्णत्ता, तं आयसरीरअणवकंखवत्तिया चेव, परसरीरअणवकंखवत्तिया चेव।
३५. दो किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-पेज्जवत्तिया चेव, दोसवत्तिया चेव। ३६. पेज्जवत्तिया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-मायावत्तिया चेव, लोभवत्तिया चेव । ३७. दोसवत्तिया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-कोहे चेव, माणे चेव।
३२. क्रिया दो प्रकार की है-अनाभोगप्रत्यया क्रिया (अज्ञान, प्रमाद से होने वाली क्रिया) और अनवकांक्षाप्रत्यया क्रिया (असावधानीपूर्वक की जाने वाली हिंसक क्रिया)। ३३. अनाभोगप्रत्यया क्रिया दो प्रकार की है-अनायुक्त आदानता क्रिया (असावधानीपूर्वक वस्त्र आदि लेना) और अनायुक्त प्रमार्जनता क्रिया (असावधानी से वस्त्र, पात्र आदि का प्रमार्जन करना)। ३४. अनवकांक्षाप्रत्यया क्रिया दो प्रकार की है है-आत्मशरीर-अनवकांक्षाप्रत्यया क्रिया (असावधानीपूर्वक अपने शरीर से होने वाली क्रिया) और परशरीर अनवकांक्षाप्रत्यया क्रिया (दूसरों के शरीर की परवाह न कर उन्हें हत्या आदि के लिए प्रेरित करना)।
की है-प्रेयःप्रत्यया क्रिया (राग भाव से अनुप्रेरित क्रिया) और द्वेषप्रत्यया ॥ क्रिया। (द्वेष के निमित्त से होने वाली क्रिया)। ३६. प्रेयःप्रत्यया क्रिया दो प्रकार की है-मायाप्रत्यया क्रिया (माया से प्रेरित रागात्मक क्रिया) और लोभप्रत्यया क्रिया (लोभ के निमित्त से होने वाली क्रिया)। ३७. द्वेषप्रत्यया क्रिया दो प्रकार की है-क्रोधप्रत्यया क्रिया (क्रोध के वश होकर की जाने वाली द्वेषपूर्ण क्रिया) और मानप्रत्यया क्रिया (मान के निमित्त से होने वाली क्रिया)।
B555555卐555555555555555555555555555555555555555558
द्वितीय स्थान
(51)
Second Sthaan
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org