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5 involved in indulgence in false perception / faith ). 18. Maya-pratyaya kriya 5 5 (indulgence in deceit ) is of two kinds-atma-bhaava-vanchana kriya 5 (indulgence in deceit by expressing noble thoughts concealing ill feelings) and para-bhaava-vanchana kriya (indulgence in deceit using false documents and other such means). 19. Mithyadarshan-pratyaya kriya is of two kinds-unatirikta mithyadarshan-pratyaya kriya (indulgence in false perception/faith by conveying misinformation, like knowing that soul is confined to the body but calling it to be as small as thumb or as large as the universe) and tadvayatirikta mithyadarshan-pratyaya kriya फ्र (indulgence in false perception/faith by negating the existence of an existing thing, like saying that soul does not exist).
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20. Kriya is of two kinds-drishtija kriya (act of looking at a thing with attachment) and sprishtija kriya (act of touching a thing with 5 attachment). 21. Drishtija kriya is of two kinds-jiva- drishtija kriya (act फ्र of looking at a living thing with attachment) and ajiva-drishtija kriya (act of looking at a non-living thing with attachment). 22. Sprishtija kriya is of two kinds-jiva-sprishtija kriya (act of touching a living thing with attachment) and ajiva-sprishtija kriya (act of touching a non-living 5 thing with attachment).
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२३. दो किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - पाडुच्चिया चेव, सामंतोवणिवाइया चेव । 5 २४. पाडुच्चिया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - जीवपाडुच्चिया चेव, अजीवपाडुच्चिया चेव । २५. सामंतोवणिवाइया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - जीवसामंतोवणिवाइया चेव, अजीवसामंतोवणिवाइया चेव ।
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२६. दो किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा- साहत्थिया चेव, णेसत्थिया चेव । २७. साहत्थिया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - जीवसाहत्थिया चेव, अजीवसाहत्थिया चेव । २८. णेसत्थिया 5 किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - जीवणेसत्थिया चेव, अजीवणेसत्थिया चेव ।
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२३. क्रिया दो प्रकार की है - प्रातीत्यिकी क्रिया (बाहरी वस्तु के निमित्त या उसके सम्पर्क से होने वाली कषायात्मक प्रवृत्ति) और सामन्तोपनिपातिकी क्रिया (अपनी वस्तुओं के विषय में दूसरों के द्वारा की गई 5 प्रशंसा सुनकर होने वाली कषायपूर्ण प्रवृत्ति) । २४. प्रातीत्यिकी क्रिया दो प्रकार की है - जीवप्रातीत्यिकी क्रिया ( जीव के निमित्त से होने वाली क्रिया) और अजीवप्रातीत्यिकी क्रिया (अजीव के निमित्त से होने वाली क्रिया) । २५. सामन्तोपनिपातिकी क्रिया दो प्रकार की है - जीवसामन्तोपनिपातिकी क्रिया ( अपनी सजीव वस्तुओं के विषय में लोगों द्वारा की गई प्रशंसादि सुनकर होने वाली क्रिया) और अजीवसामन्तोपनिपातिकी क्रिया (अपनी अजीव वस्तुओं के विषय में प्रशंसादि के सुनने पर होने वाली क्रिया)।
द्वितीय स्थान
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Second Sthaan
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