________________
355555))))))))))))))))
5555555
055555555
))))))))))555555555
卐55555555555555555555555555555555541559
卐 ajiva-apratyakhyan kriya (indisciplined action connected with the non卐 living, such as consuming money, meat, alcohol etc.).
14. Kriya is of two kinds-arambhiki kriya (act of violence) and 4 paarigrahiki kriya (act of possession and hoarding). 15. Arambhiki kriya
is of two kinds-jiva-arambhiki kriya (act of violence involving living beings) and ajiva-arambhiki kriya (act of violence involving the nonliving; this also includes intent of harming material replicas of living things). 16. Paarigrahiki kriya is of two kinds-jiva-paarigrahiki kriya (act of possession related to living things like slaves, cattle etc.) and ajiva-paarigrahiki kriya (act of possession of non-living things like gold, silver etc.).
१७. दो किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-मायावत्तिया चेव, मिच्छादसणवत्तिया चेव। म १८. मायावत्तिया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-आयभाववंकणता चेव, परभाववंकणता चेव।
१९. मिच्छादसणवत्तिया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-ऊणाइरियमिच्छादसणवत्तिया चेव, म तव्वइरित्तमिच्छादंसणवत्तिया चेव।
२०. दो किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-दिट्ठिया चेव, पुट्ठिया चेव। २१. दिट्ठिया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-जीवदिट्ठिया चेव, अजीवदिट्ठिया चेव। २२. पुट्ठिया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-जीवपुट्ठिया चेव, अजीवपुटिया चेव।
१७. क्रिया दो प्रकार की है-मायाप्रत्यया क्रिया (माया सेवन से होने वाली क्रिया) और मिथ्यादर्शनप्रत्यया क्रिया (मिथ्यादर्शन से होने वाली क्रिया।) १८. मायाप्रत्यया क्रिया दो प्रकार की हैॐ आत्मभाव-वंचना क्रिया (अपने अप्रशस्त भावों को छुपाकर प्रशस्त दिखाने की प्रवृत्ति) और परभावॐ वंचना क्रिया (कूटलेख आदि के द्वारा दूसरों को ठगने की क्रिया) १९. मिथ्यादर्शनप्रत्यया क्रिया दो
प्रकार की है-ऊनातिरिक्त मिथ्यादर्शनप्रत्यया क्रिया (वस्तु का जैसा यथार्थ स्वरूप है उससे हीन या अधिक कहना, जैसे-शरीरव्यापी आत्मा को अंगुष्ठ-प्रमाण कहना। अथवा सर्व लोकव्यापी कहना आदि)। तद्व्यतिरिक्त मिथ्यादर्शनप्रत्यया क्रिया (विद्यमान वस्तु के अस्तित्व को अस्वीकार करना, जैसेआत्मा है ही नहीं आदि)।
२०. क्रिया दो प्रकार की है-दृष्टिजा क्रिया (राग के वशीभूत होकर देखना) और स्पृष्टिजा क्रिया (रागपूर्वक स्पर्श करना आदि)। २१. दृष्टिजा क्रिया दो प्रकार की है-जीवदृष्टिजा क्रिया (सजीव वस्तुओं ॐ को रागात्मक दृष्टि से देखना) और अजीवदृष्टिजा क्रिया (अजीव वस्तुओं को देखने वाली रागात्मक 5 प्रवृत्ति)। २२. स्पृष्टिजा क्रिया दो प्रकार की है-जीवस्पृष्टिजा क्रिया (मोह या विकार की भावना से किसी
जीव को छूना) और अजीवस्पृष्टिजा क्रिया (निर्जीव पदार्थ को विकार भाव से छूना)। + 17. Kriya is of two kinds-maya-pratyaya kriya (activity involved in
indulgence in deceit) and mithyadarshan-pratyaya kriya (activity
B555555555)))))))))))))
स्थानांगसूत्र (१)
(48)
Sthaananga Sutra (1)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org