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(hostile action) is of two kinds-jiva-pradveshiki-kriya (hostility towards living being) and ajiva-pradveshiki-kriya (hostility towards non-livi things). 10. Paaritapaniki kriya (punitive action) is of two kinds svahast-paaritapaniki-kriya (inflicting pain on self and others with one's own hands) and parahast-paaritapaniki-kriya (causing other person to inflict pain on self and others).
११. दो किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-पाणातिवायकिरिया चेव, अपच्चक्खाणकिरिया चेव। १२. पाणातिवायकिरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-सहत्थपाणातिवायकिरिया चेव, परहत्थपाणातिवायकिरिया चेव। १३. अपच्चक्खाणकिरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहाजीवअपच्चक्खाणकिरिया चेव, अजीवअपच्चक्खाणकिरिया चेव।
१४. दो किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-आरंभिया चेव, पारिग्गहिया चेव। १५. आरंभिया ॥ किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-जीवआरंभिया चेव, अजीवआरंभिया चेव। १६. पारिग्गहिया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-जीवपारिग्गहिया चेव, अजीवपारिग्गहिया चेव।
११. क्रिया दो प्रकार की है-प्राणातिपात क्रिया (जीव-घात में होने वाली क्रिया) और अप्रत्याख्यान क्रिया (अविरति-अप्रत्याख्यान से होने वाली क्रिया)। १२. प्राणातिपात क्रिया दो प्रकार की है-स्वहस्तप्राणातिपात क्रिया (अपने हाथ से अपना या दूसरे के प्राणों का नाश करना) और परहस्तप्राणातिपात क्रिया (दूसरे के हाथ से अपने या दूसरे प्राणों का नाश करना)। १३. अप्रत्याख्यान 卐 क्रिया दो प्रकार की है-जीव-अप्रत्याख्यान क्रिया (जीवों से सम्बन्धित हिंसादि की अविरति या आसक्ति) और अजीव-अप्रत्याख्यान क्रिया (धन या मद्य माँस आदि अजीव-पदार्थों का सेवन)।
१४. क्रिया दो प्रकार की है-आरम्भिकी क्रिया (हिंसा सम्बन्धी प्रवृत्ति) और पारिग्रहिकी क्रिया (परिग्रह के संग्रह या संरक्षण सम्बन्धी क्रिया)। १५. आरम्भिकी क्रिया दो प्रकार की है-जीवआरम्भिकी क्रिया (जीवों की हिंसा से सम्बन्धित क्रिया) और अजीव-आरम्भिकी क्रिया (जीव, शरीर अथवा जीव की आकृति आदि के उपमर्दन की तथा अन्य अचेतन वस्तुओं के आरम्भ-समारम्भ की क्रिया)। १६. पारिग्रहिकी क्रिया दो प्रकार की है-जीव-पारिग्रहिकी क्रिया (दासी-दास आदि सचेतन परिग्रह सम्बन्धी क्रिया) और अजीव-पारिग्रहिकी क्रिया (हिरण्य-सुवर्णादि अचेतन परिग्रह से सम्बन्धित क्रिया।)
11. Kriya is of two kinds-pranatipat kriya (act of harming or destroying life) and apratyakhyan kriya (indisciplined action in absence of resolve of abstainment). 12. Pranatipat kriya is of two kinds-svahastpranatipat kriya (destroying life of self and others with one's own hands) and parahast-pranatipat kriya (causing other person to destroy life of self and others). 13. Apratyakhyan kriya is of two kinds-jiva-apratyakhyan kriya (indisciplined action, such as violence, directed at living beings) and
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द्वितीय स्थान
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Second Sthaan
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