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卐 की है-ऐर्यापथिकी (अप्रमत्त छद्मस्थ साधु अथवा सयोगी केवली के द्वारा गमनागमन में होने वाली
! क्रिया) और साम्परायिकी (योग एवं कषायपूर्वक जीव को कर्म बंधाने वाली क्रिया)। 卐 ५. क्रिया दो प्रकार की है-कायिकी (शारीरिक क्रिया) और आधिकरणिकी क्रिया (अधिकरण
शस्त्र आदि की प्रवृत्तिरूप)। ६. कायिकी क्रिया दो प्रकार की कही है-अनुपरतकायक्रिया
(प्रत्याख्यानरहित व्यक्ति की शारीरिक प्रवृत्ति) और दुष्प्रयुक्त कायक्रिया (इन्द्रिय और मन के विषयों में 卐 आसक्त प्रमत्तमुनि की शारीरिक प्रवृत्ति)। ७. आधिकरणिकी क्रिया दो प्रकार की है
संयोजनाधिकरणिकी (पूर्वनिर्मित भागों को पुनः जोड़कर शस्त्र-निर्माण करने की क्रिया) और # निर्वर्तनाधिकरणिकी क्रिया (नये सिरे से शस्त्र-निर्माण करने की क्रिया)।
८. क्रिया दो प्रकार की है-प्रादोषिकी (प्राद्वेषिकी-क्रोध, द्वेष एवं मात्सर्यभावयुक्त क्रिया) और ॐ पारितापनिकी (दूसरों को सन्ताप व ताड़ना देने वाली क्रिया)। ९. प्रादोषिकी क्रिया दो प्रकार की हैम जीवप्रादोषिकी (जीव के प्रति होने वाला द्वेष एवं मात्सर्य भाव) और अजीवप्रादोषिकी (अजीव के प्रति
होने वाला द्वेष भाव)। १०. पारितापनिकी क्रिया दो प्रकार की है-स्वहस्तपारितापनिकी (अपने हाथ से के अपने को या दूसरे को पीड़ा रूप परिताप देना) और परहस्तपारितापनिकी (दूसरे व्यक्ति के हाथ से है स्वयं को या अन्य को पीड़ा पहुँचाना)।
2. Kriya (activity) is of two kinds-jivakriya (activity of soul or living being) and ajivakriya (transformation of matter particles into karmas). + 3. Jivakriya is of two kinds-samyaktva kriya (activity that enhances
right perception/faith) and mithyatva kriya (activity that enhances false perception/faith). 4. Ajivakriya is of two kinds-airyapathiki [careful movement of apramatt chhadmasth sadhu (accomplished ascetic who is short of omniscience due to residual karmic bondage) or sayogi kevali (an omniscient with non-vitiating karmas)] and samparayiki (activity inspired by association and passions and leading to karmic bondage).
5. Kriya is of two kinds-kaayiki kriya (bodily or physical activity) and aadhikaraniki kriya (activity involving tools or weapons). 6. Kaayiki $ kriya is of two kinds-anuparat-kaaya-kriya (physical activity of a person who has not resolved to abstain from sinful activities) and dushprayukata-kaaya-kriya (physical activity of a pervert ascetic with sensual and mental cravings). 7. Aadhikaraniki kriya is of two kindssamyojan-aadhikaranik-kriya (the act of assembling weapon with already made components) and nirvartan-aadhikaranik-kriya (act of making weapons from scratch).
8. Kriya is of two kinds-pradveshiki kriya (hostile action inspired by feelings of anger, aversion and malice) and paaritapaniki kriya (punitive # action of inflicting punishment and pain on others). 9. Pradveshiki kriya
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| स्थानांगसूत्र (१)
(46)
Sthaananga Sutra (1)
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