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(५) दानादिलब्धियाँ-दानलब्धि, (६) लाभलब्धि, (७) भोगलब्धि तथा (८) उपभोगलब्धि के भी भेदों की विवक्षा न करने से ये लब्धियाँ भी एक-एक प्रकार की हैं।
(५-८) दानलब्धि से युक्त जो ज्ञानी जीव (सम्यग्दृष्टि, देशव्रती, महाव्रती एवं केवली) हैं, उनमें पाँच ज्ञान भजना से पाये जाते हैं। दानलब्धि वाले जो अज्ञानी जीव हैं, उनमें तीन अज्ञान पाये जाते हैं। दान आदि लब्धिरहित जीव सिद्ध होते हैं, यद्यपि उनके दानान्तराय आदि पाँचों अन्तराय कर्मों का क्षय हो चुका होता है,
तथापि वहाँ दातव्य आदि पदार्थ का अभाव होने से तथा दान ग्रहणकर्ता जीवों के न होने से और कृतकृत्य हो म जाने के कारण किसी प्रकार का प्रयोजन न होने से उनमें दान आदि की लब्धि नहीं मानी गई है। उनमें नियम से 4
एक मात्र केवलज्ञान होता है। दानलब्धि और अलब्धि वाले जीवों की तरह लाभलब्धि, भोगलब्धि, उपभोगलब्धि
और वीर्यलब्धि तथा इनकी अलब्धि वाले जीवों को समझना चाहिए। 卐 (१) वीर्यलब्धि-उसके तीन प्रकार हैं-(१) बालवीर्यलब्धि-जिससे बाल अर्थात् संयमरहित जीव की
असंयमरूप प्रवृत्ति होती है। (२) पण्डितवीर्यलब्धि-जिससे संयम के विषय में प्रवृत्ति होती हो। (३) * बाल-पण्डितवीर्यलब्धि-जिससे देशविरति में प्रवृत्ति होती हो।
(९) वीर्यलब्धि वाले जीवों में बालवीर्यलब्धि वाले जीव असंयत अविरत होते हैं। उनमें से जो सम्यग्दृष्टि ज्ञानी जीव हैं, उनमें तीन ज्ञान भजना से और जो मिथ्यादृष्टि अज्ञानी जीव हैं, उनमें तीन अज्ञान भजना से पाये 卐 जाते हैं। बालवीर्यलब्धिरहित जीव सर्वविरत, देशविरत और सिद्ध होते हैं, अतः उनमें पाँच ज्ञान भजना से पाये 卐 जाते हैं। पण्डितवीर्यलब्धि-सम्पन्न जीव ज्ञानी ही होते हैं, उनमें पाँच ज्ञान भजना से पाये जाते हैं। मनःपर्यवज्ञान के
पण्डितवीर्यलब्धि वाले जीवों में ही होता है। पण्डितवीर्यलब्धिरहित जीव असंयत, देशसंयत और सिद्ध होते हैं। है इनमें से असंयत जीवों में पहले के तीन ज्ञान या तीन अज्ञान भजना से पाये जाते हैं, देशसंयत में प्रथम के तीन ॐ ज्ञान भजना से पाये जाते हैं और सिद्ध जीवों में एक मात्र केवलज्ञान ही होता है। सिद्ध जीवों में
पण्डितवीर्यलब्धि नहीं होती, क्योंकि धर्मकार्यों में सर्वथा प्रवृत्ति करना पण्डितवीर्य कहलाता है और ऐसी प्रवृत्ति सिद्धों में नहीं होती। बाल-पण्डितवीर्यलब्धि वाले देशसंयत जीव होते हैं, उनमें प्रथम के तीन ज्ञान भजना से पाये जाते हैं। बाल-पण्डितवीर्यलब्धिरहित जीव असंयत, सर्वविरत और सिद्ध होते हैं, इनमें पाँच ज्ञान तीन अज्ञान भजना से पाये जाते हैं।
(१०) इन्द्रियलब्धि वाले ज्ञानी जीवों में प्रथम के चार ज्ञान भजना से होते हैं. इनमें केवलज्ञान नहीं होता. 5 क्योंकि केवलज्ञानी इन्टियों का उपयोग नहीं करते। इन्द्रियलब्धियुक्त अज्ञानी जीवों में तीन अज्ञान भजना से पाये जाते हैं। इन्द्रियलब्धिरहित जीव एक मात्र केवलज्ञानी होते हैं, उनमें सिर्फ एक केवलज्ञान पाया जाता है। म
श्रोत्रेन्द्रियलब्धि, चक्षुरिन्द्रियलब्धि और घ्राणेन्द्रियलब्धि वाले और अलब्धि वाले जीवों का कथन । इन्द्रियलब्धि और अलब्धि वाले जीवों के समान करना चाहिए। अर्थात श्रोत्रेन्द्रिय आदि लब्धिरहित ज जीव हैं, उनमें दो या एक ज्ञान होता है। जो ज्ञानी हैं, उनमें सास्वादनसम्यग्दृष्टि अपर्याप्त अवस्था में दो ज्ञान पाये ॥ जाते हैं, जो एक ज्ञान वाले हैं, उनमें सिर्फ केवलज्ञान होता है, क्योंकि श्रोत्रादि इन्द्रियोपयोगरहित होने से श्रोत्रादि इन्द्रियलब्धिरहित हैं। श्रोत्रेन्द्रियलब्धिरहित अज्ञानी जीवों में प्रथम के दो अज्ञान पाये जाते हैं।
चक्षुरिन्द्रिय और घ्राणेन्द्रिय लब्धिमान् जो पंचेन्द्रिय जीव हैं, उनमें चार ज्ञान (केवलज्ञान के अतिरिक्त) 卐 और तीन अज्ञान भजना से होते हैं। विकलेन्द्रियों में श्रोत्रेन्द्रियलब्धिवत् दो ज्ञान व दो अज्ञान पाये जाते हैं। चक्षुरिन्द्रियलब्धिरहित जीव एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय तथा केवली होते हैं एवं घ्राणेन्द्रियलब्धिरहित जीव
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| भगवती सूत्र (३)
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Bhagavati Sutra (3)
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