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फ्र लब्धि । (६) लाभलब्धि - लाभान्तराय कर्म के क्षय अथवा क्षयोपशम से होने वाली लब्धि । (७) भोगलब्धिभोगान्तराय के क्षय या क्षयोपशम से होने वाली लब्धि । (८) उपभोगलब्धि - उपभोगान्तराय के क्षय या क्षयोपशम 5 से होने वाली लब्धि । ( ९ ) वीर्यलब्धि - वीर्यान्तराय कर्म के क्षय या क्षयोपशम से होने वाली लब्धि । (१०) इन्द्रियलब्धि - मतिज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम से तथा जातिनामकर्म एवं पर्याप्तनामकर्म के उदय से होने वाली लब्धि । लद्धिया का अर्थ है लब्धि वाले जीव में और अलद्धिया का अर्थ है लब्धि रहित जीव में।
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(१) ज्ञानलब्धि - ज्ञानलब्धि के पाँच और इसके विपरीत अज्ञानलब्धि के तीन भेद बताये गये हैं।
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( १. क ) ज्ञानलब्धिमान जीव सदा ज्ञानी और अज्ञानलब्धि वाले (ज्ञानलब्धिरहित ) जीव सदा अज्ञानी 5 होते हैं।
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आभिनिबोधिकज्ञानलब्धि वाले जीवों में चार ज्ञान भजना से पाए जाते हैं, इसका कारण यह है कि केवली 5 को आभिनिबोधिक ज्ञान नहीं होता । मतिज्ञान की अलब्धि वाले जो ज्ञानी वे एक मात्र केवलज्ञान वाले हैं और जो अज्ञानी हैं, वे दो अज्ञान वाले या तीन अज्ञानयुक्त होते हैं। इसी प्रकार श्रुतज्ञान की लब्धि और अलब्धि वाले जीवों के विषय में समझना चाहिए।
अवधिज्ञान वालों में तीन ज्ञान (मति, श्रुत और अवधि) अथवा चार ज्ञान (केवलज्ञान को छोड़कर) होते हैं । अवधिज्ञान की अलब्धि वाले जो ज्ञानी होते हैं, उनमें दो ज्ञान (मति और श्रुत) होते हैं, या तीन ज्ञान (मति, श्रुत और मनः पर्यवज्ञान होते हैं या फिर एक ज्ञान (केवलज्ञान) होता है। जो अज्ञानी हैं, उनमें दो अज्ञान क (मति - अज्ञान, श्रुत- अज्ञान) या तीनों अज्ञान होते हैं।
मनःपर्यायज्ञानलब्धि वाले जीवों में या तो तीन ज्ञान (मति, श्रुत और मनःपर्यायज्ञान) या फिर चार ज्ञान (केवलज्ञान को छोड़कर) होते हैं । मनःपर्यायज्ञान की अलब्धि वाले जीवों में जो ज्ञानी हैं, उनमें दो ज्ञान (मति 5 और श्रुत) वाले या तीन ज्ञान (मति, श्रुत, अवधि) वाले हैं, या फिर एक ज्ञान (केवलज्ञान) वाले हैं। इनमें जो अज्ञानी हैं, वे दो या तीन अज्ञान वाले हैं।
केवलज्ञानलब्धि वाले जीवों में एक मात्र केवलज्ञान ही होता है, केवलज्ञान की अलब्धि वाले जीवों में जो ज्ञानी हैं उनमें प्रथम के दो ज्ञान, या प्रथम के तीन ज्ञान अथवा मति, श्रुत और मनः पर्यवज्ञान, या प्रथम के चार ज्ञान होते हैं; जो अज्ञानी हैं, उनमें दो या तीन अज्ञान होते हैं।
(ख) अज्ञानलब्धिमान् जीवों में भजना से तीन अज्ञान होते हैं। अज्ञानलब्धिरहित जीवों में भजना से पाँच ज्ञान पाये जाते हैं। मति - अज्ञान और श्रुत- अज्ञान की लब्धि वाले जीवों में पूर्ववत् तीन अज्ञान भजना से पाये जाते हैं तथा मति - अज्ञान और श्रुत- अज्ञान की अलब्धि वाले जीवों में पूर्ववत् पाँच ज्ञान भजना से पाये जाते 5 हैं । विभंगज्ञान की लब्धि वाले अज्ञानी जीवों में नियमतः तीन अज्ञान होते हैं। विभंगज्ञान की अलब्धि वाले ज्ञानी जीवों में पाँच ज्ञान भजना से और अज्ञानी जीवों में नियमतः प्रथम के दो अज्ञान पाये जाते हैं।
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(२) दर्शनलब्धि के तीन भेद हैं- (१) सम्यग्दर्शनलब्धि-मिथ्यात्वमोहनीय कर्म के क्षय, क्षयोपशम या उपशम से आत्मा में होने वाला परिणाम । (२) मिथ्यादर्शनलब्धि - अदेव में देव बुद्धि आदि आत्मा के विपरीत श्रद्धानमिथ्यात्व के अशुद्ध पुद्गलों के वेदन से उत्पन्न विपर्यासरूप जीव - परिणाम । ( ३ ) सम्यग्मिथ्या (मिश्र) दर्शनलब्धि - 5 मिध्यात्व के अर्ध-विशुद्ध पुद्गल के वेदन से एवं मिश्रमोहनीय कर्म के उदय से उत्पन्न मिश्ररुचि-मिश्ररूप (किञ्चित् अयथार्थ तत्त्व श्रद्धानरूप) जीव के परिणाम ।
भगवती सूत्र (३)
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Bhagavati Sutra (3)
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