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5 organs (seindriya). Asanjni jivas (non-sentient beings) follow the
5 of two-sensed beings (dvindriya). No-sanjni-no-asanjni jivas ( neither 5
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[Ans.] Gautam! They follow the pattern of living beings with sense
sentient nor non-sentient beings) are like Siddhas.
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विवेचन : उक्त सूत्रों में गति आदि आट द्वारों की अपेक्षा ज्ञानी - अज्ञानी की प्ररूपणा - ( १ ) गतिद्वार - गति की
अपेक्षा पाँच प्रकार के जीव हैं-नरकगतिक, तिर्यंचगतिक, मनुष्यगतिक, देवगतिक और सिद्धगतिक ।
5 हैं। पंचेन्द्रिय तिर्यंच और मनुष्य, जो नरक में जाने वाले हैं, वे यदि सम्यग्दृष्टि हों तो ज्ञानी होते हैं, क्योंकि उन्हें
१. निरयगतिक जीव वे हैं, जो यहाँ से मरकर नरक में जाने के लिए विग्रहगति (अन्तरालगति) में चल रहे
5 अवधिज्ञान भवप्रत्यय होने के कारण विग्रहगति में भी होता है और नरक में नियमतः उन्हें तीन ज्ञान होते हैं।
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यदि वे मिथ्यादृष्टि हों तो वे अज्ञानी होते हैं, उनमें से नरकगामी यदि असंज्ञी पंचेन्द्रियतिर्यंच हो तो विग्रहगति में अपर्याप्त अवस्था तक उसे विभंगज्ञान नहीं होता, उस समय तक उसे दो अज्ञान ही होते हैं, किन्तु मिथ्यादृष्टि संज्ञी पंचेन्द्रिय नरकगामी को विग्रहगति में भी भवप्रत्ययिक विभंगज्ञान होता है। इसलिए निरयगतिक में तीन अज्ञान भजना से कहे गये हैं।
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२. तिर्यंचगतिक जीव वे हैं जो यहाँ से मरकर तिर्यंचगति में जाने के लिए विग्रहगति में चल रहे हैं । उनमें नियम से दो ज्ञान या दो अज्ञान इसलिए बताए हैं कि सम्यग्दृष्टि जीव अवधिज्ञान से च्युत होने के बाद मति - श्रुतज्ञानसहित तिर्यंचगति में जाता है। इसलिए उसमें नियमतः दो ज्ञान होते हैं तथा मिध्यादृष्टि जीव विभंगज्ञान से गिरने के बाद मति- अज्ञान, श्रुत- अज्ञान सहित तिर्यंचगति में जाता है इसलिए नियमतः उसमें दो अज्ञान होते हैं।
३. मनुष्यगति में जाने के लिए जो विग्रहगति में चल रहे हैं, वे मनुष्यगतिक कहलाते हैं। मनुष्यगतिक में हुए जो जीव ज्ञानी होते हैं, उनमें से कई तीर्थंकर की तरह अवधिज्ञान सहित मनुष्यगति में जाते हैं, उनमें ज्ञान होते हैं, जबकि अवधिज्ञानरहित मनुष्यगति में जाने वालों में दो ज्ञान होते हैं । इसीलिए यहाँ तीन ज्ञान भजना से कहे हैं। जो मिथ्यादृष्टि हैं, वे विभंगज्ञानरहित ही मनुष्यगति में उत्पन्न होते हैं। इसलिए उनमें दो अज्ञान नियम से कहे गये हैं
तीन
४. देवगति में जाते हुए विग्रहगति में चल रहे जीवों का कथन नैरयिकों की तरह ( नियमतः तीन ज्ञान अथवा भजना से तीन अज्ञान वाले) समझना चाहिए।
५. सिद्धगतिक जीवों में तो केवल एक ही ज्ञान- केवलज्ञान होता है।
( २ ) इन्द्रियद्वार - सेन्द्रिय का अर्थ है - इन्द्रिय वाले जीव । सेन्द्रिय ज्ञानी जीवों को २, ३ या ४ ज्ञान होते हैं;
यह बात लब्धि की अपेक्षा से समझना चाहिए, क्योंकि उपयोग की अपेक्षा तो सभी जीवों को एक समय में एक ही ज्ञान होता है । केवलज्ञान अतीन्द्रिय ज्ञान है, वह सेन्द्रिय नहीं है। अज्ञानी सेन्द्रिय जीवों को तीन अज्ञान भजना से होते हैं, किन्हीं को दो और किन्हीं को तीन अज्ञान होते हैं। एकेन्द्रिय जीव मिध्यादृष्टि होने से अज्ञानी ही होते हैं, उनमें नियमतः दो अज्ञान होते हैं। तीन विकलेन्द्रियों में दो अज्ञान तो नियमतः होते हैं, किन्तु सास्वादन गुणस्थान होने की अवस्था में दो ज्ञान भी होने सम्भव हैं । अनीन्द्रिय (इन्द्रियों के उपयोग से रहित ) 5 जीव तो केवलज्ञानी ही होते हैं।
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5 भगवती सूत्र (३)
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Bhagavati Sutra (3)
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