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जमालि का श्रावस्ती में और भगवान का चम्पा में विहरण JAMALI IN SHRAVASTI AND BHAGAVAN IN CHAMPA
८८. तेणं कालेणं तेणं समएणं सावत्थी नाम णयरी होत्था। वण्णओ। कोढए चेइए। वण्णओ। जाव वणसंडस्स।
८८. उस काल उस समय में श्रावस्ती नाम की नगरी थी। उसका वर्णन वहाँ कोष्ठक नामक उद्यान ॐ था, यावत् वनखण्ड तक समग्र वर्णन जान लेना चाहिए।
88. During that period of time there was a city called Shravasti. Description (as in Aupapatik Sutra). There was a garden called Koshthak. Description. ... and so on up to... forest strip.
८९. तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नाम नयरी होत्था। वण्णओ। पुण्णभद्दे चेइए। वण्णओ। जाव पुढविसिलावट्टओ।
८९. उस काल और उस समय में चम्पा नाम की नगरी थी। उसका वर्णन वहाँ पूर्णभद्र नामक चैत्य ॐ था। उनका वर्णन (औपपातिकसूत्र से समझ लेना चाहिए) यावत् उसमें पृथ्वीशिलापट्ट था।
89. During that period of time there was a city called Champa. Description (as in Aupapatik Sutra). There was a garden called Purnabhadra. Description. ... and so on up to... Slab of stone.
९०. तए णं से जमाली अणगारे अन्नया कयाइ पंचहिं अणगारसएहिं सद्धिं संपरिबुडे पुवाणुपुट्विं चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे जेणेव सावत्थी नयरी जेणेव कोट्ठए चेइए तेणेव उवागच्छइ, तेणेव उवागच्छित्ता अहापडिरूवं उग्गहं उग्गिण्हइ, अहापडिरूवं उग्गहं उग्गिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। ___९०. एक बार वह जमालि अनगार, पाँच सौ अनगारों के साथ अनुक्रम से विचरण करता हुआ
और ग्रामानुग्राम विहार करता हुआ श्रावस्ती नगरी में जहाँ कोष्ठक उद्यान था, वहाँ आया और मुनियों
के कल्प के अनुरूप अवग्रह ग्रहण करके संयम और तप के द्वारा आत्मा में रमण करता हुआ विचरण फ़ करने लगा।
90. Once in course of his wanderings from one village to another, that ascetic Jamali, along with his group of five hundred ascetics, arrived at Koshthak garden in Shravasti City. He took the vows according to the ascetic code and camped in the garden devoting his time to ascetic discipline and austerities. __९१. तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नया कयाइ पुवाणुपुब्बिं चरमाणे जाव सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणेव चंपा नगरी जेणेव पुण्णभद्दे चेइए तेणेव उवागच्छइ; तेणेव उवागच्छित्ता अहापडिरूवं उग्गहं उग्गिण्हइ, अहापडिरूवं उग्गहं उग्गिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरइ।
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पती सूत्र (३)
(486)
Bhagavati Sutra (3)
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