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Illustration No. 21
चित्र-परिचय 21
जमालिकुमार का वैराग्य भगवान महावीर की देशना सुनने से जमालि को वैराग्य प्राप्त हो गया। उन्होंने भगवान से निवेदन किया कि "हे भगवन् ! मैं माता-पिता की अनुमति लेकर आपके पास प्रवज्जित
होना चाहता हूँ।" फिर उन्होंने घर आकर माता-पिता से दीक्षा की आज्ञा माँगी, यह सुनते है ही जमालिकुमार की माता निस्तेज हो गई और मूछित होकर जमीन पर गिर पड़ी। होश में में आने के पश्चात् उन्होंने जमालि को संसार में रुकने के लिए धन और वैभव के बहुत प्रलोभन
दिये। श्रमण जीवन की अनेक कठिनाईयाँ बताईं। श्रमण जीवन के पालन को तलवार की धार पर चलने के समान बताया। महासमुद्र तैरने के समान पालन करने में अतीव कठिनाई वाला बताया। इस प्रकार अनेक अनुकूल और प्रतिकूल युक्तियाँ दीं, परन्तु जमालि ने अपने विवेकपूर्ण वैराग्य वचनों से माता-पिता को आश्वस्त कर दिया। उन्होंने कामभोगों को असार
बताया और शरीर की नश्वरता का कथन करते हुए कहा कि यह मानव शरीर नाड़ियों फ़ और स्नायु के जाल से भरा हुआ दुर्बल है। अशुचि का भण्डार है। मानव जीवन को कुश है की नोंक पर पड़ी हई ओस की बूंद के समान क्षणभंगुर बताया। इस प्रकार उन्होंने माता-पिता
को आश्वस्त कर दिया कि उनका वैराग्य पक्का है।
-शतक 9,उ. 33
DETACHMENT OF PRINCE JAMALI
Hearing to the sermon of Bhagavan Mahavir Jamali got detached. He submitted to Bhagavan, O Bhagavan! I desire to seek permission from my parents and get initiated by you." Then he went home and sought permission from his parents. At this request from Jamali his mother lost her composure, fainted and collapsed on the ground. After regaining her consciousness she enticed Jamali with wealth and grandeur to remain a householder. She also revealed many hardships of ascetic life. This way with favourable and unfavourable arguments she tried to dissuade him. But Jamali convinced his parents about his intention with balanced logic and spiritual words.
--Shatak-9, lesson-33
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