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________________ FFFFFFFFFFFFFFFFFFFFhh B5555555555555555555555555555555555555 म २७. तए णं ते कोडुंबियपुरिसा जमालिया खत्तियकुमारेणं एवं वुत्ता समाणा जाव पच्चप्पिणंति। २७. तब उन कौटुम्बिक पुरुषों ने क्षत्रियकुमार जमालि के इस आदेश को सुनकर तदनुसार कार्य करके यावत् निवेदन किया। 4 27. On getting the order the servants executed it ... and so on up to... Hi and reported back. २८. तए णं से जमाली खत्तियकुमारे जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ, तेणेव उवागच्छित्ता पहाए कयबलिकम्मे जहा उववाइए परिसा-वण्णओ तहा भाणियव् जाव चंदणोक्खित्तगायसरीरे ॐ सव्यालंकारविभूसिए मज्जणघराओ पडिनिक्खमइ, मज्जणघराओ पडिणिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला, जेणेव चाउघंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ, तेणेव उवागच्छित्ता चाउघंटं आसरहं दुरूहेइ, चाउघंटं आसरहं दरूहित्ता सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं महया भडचडकरपहकरवंदपरिक्खित्ते खत्तियकुंडग्गामं नगरं मझमझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव माहणकुंडग्गामे नगरे जेणेव बहुसालए क चेइए तेणेव उवागच्छइ, तेणेव उवागच्छित्ता तुरए निगिण्हेइ, तुरए निगिण्हित्ता रहं ठवेइ, रहं ठवित्ता रहाओ पच्चोरुहति, रहाओ पच्चोरुहित्ता पुप्फ-तंबोलाउहमादीयं वाहणाओ य विसज्जेइ, वाहणाओ म विसज्जित्ता एगसाडियं उत्तरासंगं करेइ, एगसाडियं उत्तरासंगं करेत्ता आयंते चोक्खे परमसुइन्भूए अंजलिमउलियहत्थे जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, तेणेव उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ, तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेत्ता जाव तिविहाए पज्जुवासणाए पज्जुवासेइ। २८. तदनन्तर वह जमालि क्षत्रियकुमार, जहाँ स्नानगृह था, वहाँ आया और वहाँ आकर उसने क स्नान किया तथा अन्य सभी दैनिक क्रियाएँ की, यावत् शरीर पर चन्दन का लेपन किया; समस्त आभूषणों से विभषित हुआ और स्नानगृह से निकला आदि सारा वर्णन तथा परिषद् का वर्णन, जिस प्रकार औपपातिकसूत्र में है, उसी प्रकार यहाँ जानना चाहिए। फिर जहाँ बाहर की उपस्थानशाला थी है और जहाँ सुसज्जित चतुर्घण्ट अश्वरथ था, वहाँ वह आया। उस अश्वरथ पर चढ़ा। कोरण्टपुष्प की माला से युक्त छत्र को मस्तक पर धारण किया हुआ तथा बड़े-बड़े सुभटों, दासों, पथदर्शकों आदि के के समूह से परिवृत हुआ वह जमालि क्षत्रियकुमार क्षत्रियकुण्डग्राम नगर के मध्य में से होकर निकला और ब्राह्मणकुण्डग्राम नामक नगर के बाहर जहाँ बहुशाल नामक उद्यान था, वहाँ आया। वहाँ घोड़ों को म रोककर रथ को खड़ा किया, तब वह रथ से नीचे उतरा। फिर उसने पुष्प, ताम्बूल, आयुध (शस्त्र) आदि तथा उपानह (जूते) वहीं छोड़ दिये। एक पट वाले वस्त्र का उत्तरासंग (उत्तरीय धारण) किया। म तदनन्तर आचमन किया हुआ और अशुद्धि दूर करके अत्यन्त शुद्ध हुआ जमालि मस्तक पर दोनों हाथ जोड़े हुए श्रमण भगवान महावीर स्वामी के पास पहुँचा। समीप जाकर श्रमण भगवान महावीर की तीन 3 बार आदक्षिण-प्रदक्षिणा की, यावत् त्रिविध पर्युपासना की। %% 4555))))))555555555555555555555555599999998 hhf听听听听FFFFFFFFFFFFhhhhhh नवम शतक : तेतीसवाँ उद्देशक (449) Ninth Shatak : Thirty Third Lesson Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002904
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2008
Total Pages664
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_bhagwati
File Size21 MB
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