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5 के साथ संयोग-क्रिया उसी प्रकार शर्कराप्रभा - पृथ्वी का भी आगे की सभी नरक - पृथ्वियों के साथ संयोग करना चाहिए । इसी प्रकार एक-एक पृथ्वी का आगे की नरक- - पृथ्वियों के साथ संयोग करना चाहिए; यावत् अथवा संख्यात तमः प्रभा में और संख्यात अधः सप्तम - पृथ्वी में होते हैं । ( इस प्रकार द्विकसंयोगी भंगों की कुल संख्या २३१ हुई ।)
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(१) (१) अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और संख्यात बालुकाप्रभा में होते हैं। अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और संख्यात पंकप्रभा में होते हैं। इसी प्रकार यावत् एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और संख्यात अधः सप्तम - पृथ्वी में होते हैं । (२) अथवा एक रत्नप्रभा में, दो शर्कराप्रभा में और संख्यात बालुकाप्रभा में होते हैं। यावत् अथवा एक रत्नप्रभा में, दो शर्कराप्रभा में और संख्यात अधःसप्तम - पृथ्वी में होते हैं । (३) अथवा एक रत्नप्रभा में, तीन शर्कराप्रभा में और संख्यात बालुकाप्रभा में होते हैं। इस प्रकार इसी क्रम से एक-एक नारक का अधिक संचार करना चाहिए। ( ४ ) अथवा एक रत्नप्रभा में, संख्यात शर्कराप्रभा और संख्यात बालुकाप्रभा में होते हैं । यावत् अथवा एक रत्नप्रभा में, संख्यात बालुकाप्रभा में और संख्यात अधः सप्तम पृथ्वी में होते हैं । (५) अथवा दो रत्नप्रभा में, संख्यात शर्कराप्रभा में और संख्यात बालुकाप्रभा में होते हैं। यावत् अथवा दो रत्नप्रभा में, संख्यात शर्कराप्रभा में और संख्यात अधः सप्तम - पृथ्वी में होते हैं । ( ६ ) अथवा तीन रत्नप्रभा में, संख्यात शर्कराप्रभा में और संख्यात बालुकाप्रभा में होते हैं। इस प्रकार इस क्रम से रत्नप्रभा एक-एक नैरयिक का संचार करना चाहिए, यावत् अथवा संख्यात रत्नप्रभा में, संख्यात शर्कराप्रभा में और संख्यात बालुकाप्रभा में होते हैं । यावत् अथवा संख्यात रत्नप्रभा में, संख्यात शर्कराप्रभा में और फ्र संख्यात अधः सप्तम - पृथ्वी में होते हैं । (७) अथवा एक रत्नप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में और संख्यात 5 पंकप्रभा में होते हैं । यावत् अथवा एक रत्नप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में और संख्यात अधः सप्तम - पृथ्वी में होते हैं। (८) अथवा एक रत्नप्रभा में, दो बालुकाप्रभा में और संख्यात पंकप्रभा में होते हैं । इसी प्रकार 5 इसी क्रम से त्रिकसंयोगी, चतुष्कसंयोगी, यावत् सप्तसंयोगी भंगों का कथन, दस नैरयिक सम्बन्धी भंगों के समान करना चाहिए | अन्तिम भंग ( आलापक) जो सप्तसंयोगी है, यह है अथवा संख्यात रत्नप्रभा में, संख्यात शर्कराप्रभा में यावत् संख्यात अधः सप्तम पृथ्वी में होते हैं । ३३३७।
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(a) Or one in the first hell (Ratnaprabha Prithvi) and countable (sankhyat) in the second hell (Sharkaraprabha Prithvi) and so on up to... one in the first hell (Ratnaprabha Prithvi) and countable in the seventh hell (Adhah-saptam Prithvi ). ( 6 alternative combinations) (b) Or
भगवती सूत्र (३)
Bhagavati Sutra (3)
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26. [Q.] Bhante ! When countable (sankhyat ) jivas (souls ) enter the infernal realm do they get born in the first hell (Ratnaprabha Prithvi) or the second hell (Sharkaraprabha Prithvi) or... and so on up to... the 5 seventh hell (Adhah-saptam Prithvi)? 卐
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[Ans.] Gangeya! All the countable jivas together get born either in the first hell (Ratnaprabha Prithvi) ... and so on up to... the seventh hell (Adhah-saptam Prithvi).
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