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________________ 855555555555))))) )))))))))))) ॐ संखेज्जा वालुयप्पभाए होज्जा; एवं जहा रयणप्पभाए उवरिमपुढवीहि समं चारिया एवं सक्करप्पभाए वि + उवरिमपुढवीहिं समं चारेयव्वा। एवं एक्केक्का पुढवी उवरिमपुढवीहिं समं चारेयव्वा जाव अहवा संखेज्जा तमाए, संखेज्जा अहेसत्तमाए होज्जा। २३१। (१) अहवा एगे रयण०, एगे सक्कर०, संखेज्जा वालुयप्पभाए होज्जा। अहवा एगे रयण०, एगे ॐ सक्कर०, संखेज्जा पंकप्पभाए होज्जा। जाव अहवा एगे रयण०, एगे सक्कर०, संखेज्जा अहेसत्तमाए होज्जा। (२) अहवा एगे रयण०, दो सक्कर०, संखेज्जा वालुयप्पभाए होज्जा। जाव अहवा एगे रयण, दो सक्कर०, संखेज्जा अहेसत्तमाए होज्जा। (३) अहवा एगे रयण०, तिण्णि सक्कर०, संखेज्जा वालुयप्पभाए होज्जा। एवं एएणं कमेणं एक्केक्को संचारेयव्यो। (४) अहवा एगे रयण०, संखेज्जा ॐ सक्कर०, संखेज्जा वालुयप्पभाए होज्जा; जाव अहवा एगे रयण, संखेज्जा वालुय०, संखेज्जा + अहेसत्तमाए होज्जा। (५) अहवा दो रयण०, संखेज्जा सक्कर०, संखेज्जा वालुयप्पभाए होज्जा। जाव E अहवा दो रयण०, संखेज्जा सक्कर०, संखेज्जा अहेसत्तमाए होज्जा। (६) अहवा तिण्णि रयण०, संखेज्जा 卐 सक्कर०, संखेज्जा वालुयप्पभाए होज्जा। एवं एएणं कमेणं एक्केक्को रयणप्पभाए संचारेयव्वो, जाव अहवा संखेज्जा रयण०, संखेज्जा सक्कर०, संखेज्जा वालुयप्पभाए होज्जा; जाव अहवा संखेज्जा रयण०, 卐 संखेजा सक्कर०, संखेज्जा अहेसत्तमाए होज्जा। (७) अहवा एगे रयण०, एगे वालुय०, संखेजा पंकप्पभाए होज्जा; जाव अहवा एगे रयण०, एगे वालुय०, संखेज्जा अहेसत्तमाए होज्जा। (८) अहवा एगे ज रयण०, दो वालुय०, संखेज्जा पंकप्पभाए होज्जा। एवं एएणं कमेणं तियासंजोगो चउक्कसंजोगो जाव सत्तगसंजोगो य जहा दसण्हं तहेव भाणियव्यो। पच्छिमो आलावगो सत्तसंजोगस्स-अहवा संखेज्जा रयण०, संखेज्जा सक्कर०, जाव संखेज्जा अहेसत्तमाए होज्जा। ३३३७। २६. [प्र. ] भगवन् ! संख्यात नैरयिक जीव, नैरयिक-प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए क्या ॐ रत्नप्रभा में उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न। 3 [उ. ] गांगेय ! संख्यात नैरयिक रत्नप्रभा में होते हैं, यावत् अथवा अधःसप्तम-पृथ्वी में होते हैं। म (ये असंयोगी ७ भंग होते हैं।) (क) (१) अथवा एक रत्नप्रभा में होता है और संख्यात शर्कराप्रभा में होते हैं, (२-६) इसी प्रकार यावत् एक रत्नप्रभा में और संख्यात अधःसप्तम-पृथ्वी में होते हैं। (ये ६ भंग हुए।) (ख) (१) अथवा दो रत्नप्रभा में और संख्यात शर्कराप्रभा में होते हैं, (२-६) इसी प्रकार यावत् दो रत्नप्रभा में और संख्यात के अधःसप्तम-पृथ्वी में होते हैं। (ये भी ६ भंग हुए।) (ग) (१) अथवा तीन रत्नप्रभा में और संख्यात शर्कराप्रभा में होते हैं। इसी प्रकार इसी क्रम से एक-एक नारक का संचार करना चाहिए। यावत् दस रत्नप्रभा में और संख्यात शर्कराप्रभा में होते हैं। इस प्रकार यावत् अथवा दस रत्नप्रभा में और संख्यात ऊ अधःसप्तम-पृथ्वी में होते हैं। (घ) अथवा संख्यात रत्नप्रभा में और संख्यात शर्करप्रभा में होते हैं। इस प्रकार यावत् संख्यात रत्नप्रभा में और संख्यात अधःसप्तम-पृथ्वी में होते हैं। (च) अथवा एक शर्कराप्रभा में और संख्यात बालुकाप्रभा में होते हैं। जिस प्रकार रत्नप्रभा-पृथ्वी का शेष नरक-पृथ्वीयों के 85555FFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFF नवम शतक : बत्तीसवाँ उद्देशक (399) Ninth Shatak : Thirty Second Lesson 3555555555555555))))) ))))55555 Jain Education International www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only
SR No.002904
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2008
Total Pages664
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_bhagwati
File Size21 MB
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