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44, 735 options for alternative combination of 5, 147 options for 41 alternative combination of 6 and 7 options for the combination of 7, 卐 making a total of 3003 options. (Vritti, leaf 446) ॐ नौ नैरयिकों के प्रवेशनक भंग ALTERNATIVES FOR NINE INFERNAL BEING
२४. [प्र. ] नव भंते ! नेरतिया नेरतियपवेसणएणं पविसमाणा० ? पुच्छा। म [उ. ] गंगेया ! रयणप्पभाए वा होज्जा जाव अहेसत्तमाए वा होज्जा ७। म अहवा १-८ एगे रयण० अट्ठ सक्करप्पभाए होज्जा। एवं दुयासंजोगो जाव सत्तगसंजोगो य। जहा
अट्ठण्हं भणियं तहा नवण्हं पि भाणियव्वं, नवरं एक्केक्को अभहिओ संचारेयव्वो, सेसं तं चेव। पच्छिमो फ़ आलावगो-अहवा तिण्णि रयण०, एगे सक्कर०, एगे वालुय, जाव एगे अहेसत्तमाए वा होज्जा। ५००५। म २४. [प्र. ] भगवन् ! नौ नैरयिक जीव, नैरयिक-प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए क्या रत्नप्रभा में म उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न।
[उ. ] हे गांगेय ! वे नौ नैरयिक जीव रत्नप्रभा में होते हैं, अथवा यावत् अधःसप्तम-पृथ्वी में होते हैं। __अथवा एक रत्नप्रभा में और आठ शर्कराप्रभा में होते हैं; इत्यादि। जिस प्रकार अष्ट नैरयिकों के ॐ द्विकसंयोगी, त्रिकसंयोगी, चतुष्कसंयोगी, पंचसंयोगी, षट्संयोगी और सप्तसंयोगी भंग कहे हैं, उसी
प्रकार नौ नैरयिकों के विषय में भी कहना चाहिए। विशेष यह है कि एक-एक नैरयिक का अधिक
संचार करना चाहिए। शेष सभी पूर्वोक्त प्रकार से जानना चाहिए। अंतिम भंग इस प्रकार है-अथवा तीन म रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में यावत् एक अधःसप्तम-पृथ्वी में होता है।
24. (Q.) Bhante ! When nine jivas (souls) enter the infernal realm do they get born in the first hell (Ratnaprabha Prithvi) or the second hell 卐 (Sharkaraprabha Prithvi) or ... and so on up to... the seventh hell 卐 (Adhah-saptam Prithvi)?
[Ans.] Gangeya ! All the nine together get born either in the first hell (Ratnaprabha Prithvi) ... and so on up to... the seventh hell (Adhahsaptam Prithvi).
Or one in the first hell (Ratnaprabha Prithvi) ... and so on up to... 45 eight in the second hell (Sharkaraprabha Prithvi). As alternative
combinations related to sets of three, four, five, six and seven have been stated for eight infernal beings, in the same way alternative combinations related to sets of two, three (etc.) should be stated for nine infernal beings. The only difference is that one more infernal being each should be added. All the rest should be stated as aforesaid (with regard to eight infernal beings). The last alternative combination being - three in the first hell (Ratnaprabha Prithvi), one in the second hell
35555555)5555555555555555555555555555)4555555558
| भगवती सूत्र (३)
(396)
Bhagavati Sutra (3)
因为步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步生风
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