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॥ (b) One alternative for set of seven-Or one is born in the first $1 14 hell (Ratnaprabha Prithvi), one in the second hell (Sharkaraprabha
Prithvi) ... and so on up to... one in the seventh hell (Adhah-saptam Prithvi). The total number of alternatives are 1716.
विवेचन : इस प्रकार सात नैरयिकों के नरक-प्रवेशनक में एकसंयोगी ७, द्विकसंयोगी १२६, त्रिकसंयोगी ५२५, चतुष्कसंयोगी ७००, पंचसंयोगी ३१५, षट्संयोगी ४२ और सप्तसंयोगी १; यों कुल मिलाकर १७१६ ॐ भंग हुए। (वृत्ति, पत्र ४४५) \i Elaboration - The total number of alternative combinations related to
seven infernal beings are - 7 options for no alternative combination of seven, 126 options for alternative combination of 2, 525 options for alternative combination of 3, 700 options for alternative combination of fi 4, 315 options for alternative combination of 5, 42 options for alternative combination of 6 and one option for the combination of 7, making a total
of 1716 options. (Vritti, leaf 445) म आठ रैरयिकों के प्रवेशनक भंग ALTERNATIVES FOR EIGHT INFERNAL BEING
२३. [प्र. ] अट्ठ भंते ! नेरतिया नेरइयपवेसणएणं पविसमाणा० ? पुच्छा।
[उ. ] गंगेया ! रयणप्पभाए वा होज्जा जाव अहेसत्तमाए वा होज्जा ७। ___अहवा १ + ७ ऐगे रयण० सत्त सक्करप्पभाए होज्जा १। एवं दुयासंजोगो जाव छक्कसंजोगो य जहा सत्तण्हं भणिओ तहा अट्टण्ह वि भाणियव्यो, नवरं एक्केको अब्भहिओ संचारेयव्यो। सेसं तं चेव जाव छक्कसंजोगस्स। अहवा ३ + १ + १ + १ + १ + १ तिण्णि सक्कर० एगे वालुय० जाव एगे अहेसत्तमाए होज्जा, अहवा एगे रयण० जाव एगे तमाए दो अहेसत्तमाए होज्जा, अहवा एगे रयण० जाव दो तमाए एगे अहेसत्तमाए होज्जा, एवं संचारेयव्वं जाव अहवा दो रयण०, एगे सक्कर० जाव एगे अहेसत्तमाए होज्जा। ३००३।
२३. [प्र. ] भगवन् ! आठ नैरयिक जीव, नैरयिक-प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए क्या रत्नप्रभा में उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न। __ [उ. ] गांगेय ! रत्नप्रभा में होते हैं, यावत् अथवा अधःसप्तम-पृथ्वी में होते हैं। __अथवा एक रत्नप्रभा में और सात शर्कराप्रभा में होते हैं, इत्यादि। जिस प्रकार सात नैरयिकों के
द्विकसंयोगी. त्रिकसंयोगी. चतःसंयोगी. पंचसंयोगी और षटसंयोगी भंग कहे गये हैं उसी प्रकार आठ ॐ नैरयिकों के भी द्विकसंयोगी आदि भंग कहने चाहिए; किन्तु इतना विशेष है कि एक-एक नैरयिक का
अधिक संचार करना चाहिए। शेष सभी षट्संयोगी तक पूर्वोक्त प्रकार से कहना चाहिए। अन्तिम भंग
यह है-अथवा तीन शर्कराप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में यावत् एक अधःसप्तम-पृथ्वी में होता है। (१) 卐 अथवा एक रत्नप्रभा में, यावत् एक तमःप्रभा में और दो अधःसप्तम-पृथ्वी में होते हैं। (२) अथवा एक
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भगवती सूत्र (३)
(394)
Bhagavati Sutra (3)
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