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[Ans.] Gangeya ! Earth-bodied beings (prithvikaayik jivas) are not born with interruption (saantar) but are born continually (nirantar).
6. Living beings from two-sensed beings (dvindriya jivas) to Vaimanik devs (celestial-vehicular gods) follow the pattern (of birth) of infernal beings.
७. [ प्र. ] संतरं भंते ! नेरइया उव्वट्टंति, निरंतरं नेरइया उव्वट्टंति ?
[उ. ] गंगेया ! संतरं पि नेरइया उव्वट्टंति, निरंतरं पि नेरइया उब्बट्टंति ।
७. [ प्र. ] भगवन् ! नैरयिक जीव सान्तर उद्यर्तित होते (मरते ) हैं या निरन्तर ?
[ उ. ] गांगेय ! नैरयिक जीव सान्तर भी उवर्तित होते हैं और निरन्तर भी ।
7. [Q.] Bhante ! Do infernal beings die with interruption (saantar) or do they die continually (nirantar) ?
[Ans.] Gangeya ! Infernal beings die with interruption (saantar) as well as continually (nirantar).
८. एवं जाव थणियकुमारा ।
८. इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमारों तक (के उद्वर्त्तन के सम्बन्ध में) जानना चाहिए ।
8. The same is true for death of living beings up to Stanit Kumar devs.
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[2] The same is true for one sensed beings up to plant-bodied beings 5 (vanaspatikaayik jivas).
६. बेइंदिया जाव वेमाणिया, एते जहा णेरइया ।
६. द्वीन्द्रिय जीवों से लेकर यावत् वैमानिक देवों तक नैरयिकों के समान (उत्पत्ति) जानना चाहिए।
९. [प्र.१ ] संतरं भंते ! पुढविक्काइया उव्वहंति० ? पुच्छा ।
[ उ. ] गंगेया ! संतरं पुढविक्काइया उव्वट्टंति, निरंतरं पुढविक्काइया उव्वहंति ।
[ २ ] एवं जाव वणस्सइकाइया नो संतरं, निरंतरं उव्वट्टेति ।
९. [ प्र. १ ] भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव सान्तर उद्वर्तित होते हैं या निरन्तर ?
[उ. ] गांगेय ! पृथ्वीकायिक जीवों का उद्वर्तन ( मरण) सान्तर नहीं होता, निरन्तर होता रहता है। [ २ ] इसी प्रकार यावत् वनस्पतिकायिक जीवों तक (के उद्वर्तित के विषय में) जानना चाहिए। ये पान्तर नहीं, निरन्तर उद्विर्तत होते हैं ।
9. [Q. 1] Bhante ! Do earth-bodied beings (prithvikaayik jivas) die with nterruption (saantar) or do they die continually (nirantar) ?
नवम शतक : बत्तीसवाँ उद्देशक
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Ninth Shatak: Thirty Second Lesson
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