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4 to... a jiva who has accomplished destruction-cum-pacification of Avadhi- 45
jnanaavaraniya karma (karma that obscures Avadhi-jnana) and a jiva who has accomplished destruction-cum-pacification of Keval.jnanaavaraniya karma (harma that obscures omniscience), may derive the benefits of hearing the sermon of an omniscient (Kevali), may attain pure enlightenment (right perception/faith), ... and so on up to... may y acquire Keval-jnana, by hearing it from the omniscient ... and so on up to... or his (self-enlightened omniscient's) female devotee (upaasika). केवली आदि से सुनकर अवधिज्ञान की उपलब्धि ACQUIRING AVADHI-JNANA BY HEARING
३३. तस्स णं अट्ठमंअट्ठमेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं अप्पाणं भावमाणस्स पगइभद्दयाए तहेव जाव + गवसणं करेमाणस्स ओहिणाणे समुप्पज्जइ। से णं तेणं ओहिनाणेणं समुप्पनेणं जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेणं असंखेज्जाइं अलोए लोयप्पमाणमेत्ताई खंडाई जाणइ पासइ।
३३. (केवली आदि से धर्म-वचन सुनकर सम्यग्दर्शनादि प्राप्त जीव को) निरन्तर तेले-तेले (अट्ठम-अट्ठम) तपःकर्म से अपनी आत्मा को भावित करते हुए प्रकृतिभद्रता आदि (पूर्वोक्त) गुणों से यावत् ईहा, अपोह, मार्गण एवं गवेषण करते हुए अवधिज्ञान समुत्पन्न होता है। वह उस उत्पन्न , अवधिज्ञान के प्रभाव से जघन्य अंगल के असंख्यातवें भाग और उत्कष्ट अलोक में भी लोकप्रमाण असंख्य खण्डों को जानता और देखता है।
33. An aspirant (hearing sermon from the omniscient etc.) who continuously observes the austerity of three day fasts, missing eight meals, and other austerities; at some point of time that jiva (living being), due to his natural simplicity ... and so on up to... undergoing the progressive process of Iha etc. acquires Avadhi-jnana. With the help of 4 this acquired Avadhi-jnana he is able to know and see up to a minimum distance of uncountable fraction of an Angul and maximum of innumerable portions of unoccupied space (Alok), each as vast as the occupied space (Lok).
विवेचन : केवली आदि से बिना सुने अवधिज्ञान प्राप्त करने वाले जीव को पहले विभंगज्ञान प्राप्त होता है, फिर सम्यक्त्वादि प्राप्त होने पर वही विभंगज्ञान अवधिज्ञान में परिणत हो जाता है, जबकि सुनकर अवधिज्ञान प्राप्त करने वाला जीव बेले के बदले निरन्तर तेले की तपस्या करता है। प्रकृतिभद्रता आदि गुण तथा उससे ईहादि के कारण अवधिज्ञान प्राप्त हो जाता है, जिसके प्रभाव से उत्कृष्टतः अलोक में भी लोकप्रमाण असंख्य खण्डों को जानता-देखता है। फिर वह सम्यक्त्व, चारित्र, साधुवेश आदि से केवलज्ञान भी प्राप्त कर लेता है। ऊ (वृत्ति, पत्र ४३८)
Elaboration-An aspirant who does not hear the sermon from the omniscient etc. first acquires pervert knowledge and then, when he is 4 endowed with righteousness and other virtues, this pervert knowledge 1
turns into Avadhi-jnana. On the other hand an aspirant who hears the
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| भगवती सूत्र (३)
(344)
Bhagavati Sutra (3)
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