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ज विवेचन : केवली आदि शब्दों का तात्पर्य-केवलिस्स-जिन अथवा तीर्थंकर। केवलि-श्रावक-जिसने केवली भगवान से स्वयमेव पूछा है, अथवा उनके वचन सुने हैं, वह। केवलि-उपासक-केवली की उपासना करने वाले
वली द्वारा दसरे को कहे गये वचन को सनकर बना हआ उपासक भक्त। केवलि-पाक्षिककेवलि-पाक्षिक अर्थात् स्वयंबुद्ध केवली। असोचा केवली-जिसने केवली भगवान की देशना सुनी नहीं है ऐसे जीव। (वृत्ति, पत्र ४३२)
Technical terms-Kevali-Jina or Tirthankar. Kevali-shravak-a lay disciple who has asked a question or listened to the Kevali in person. 4 Kevali-upaasak-a devotee who indirectly knows about the Kevali and his sermon. Kevali-paakshik-self-enlightened omniscient. (Vritti, leaf 432) शुद्ध बोधि का लाभालाभ BENEFIT OF RIGHT PERCEPTION/FAITH
३. [प्र. १ ] असोच्चा णं भंते ! केवलिस्स वा जाव तप्पक्खियउवासियाए वा केवलं बोहिं बुज्झेज्जा?
[उ. ] गोयमा ! असोच्चा णं केवलिस्स वा जाव अत्थेगइए केवलं बोहिं बुज्झेज्जा, अत्थेगइए केवलं बोहिं णो बुज्झेज्जा।
३. [प्र. १ ] भगवन् ! केवली यावत् केवलि-पाक्षिक की उपासिका से सुने बिना ही क्या कोई जीव शुद्ध बोधि (सम्यग्दर्शन) प्राप्त कर लेता है ? _ [उ. ] गौतम ! केवली यावत् केवलि-पाक्षिक की उपासिका से सुने बिना ही कई जीव शुद्ध बोधि को प्राप्त कर लेते हैं और कई जीव प्राप्त नहीं कर पाते।
3. [Q. 1] Bhante ! Does ajiva (living being) attain pure enlightenments (right perception/faith) even without hearing (the sermon) from the omniscient ... and so on up to... or his (self-enlightened omniscient's) female devotee (upaasika)? ___[Ans.] Gautam ! Some jiva (living being) does and some does not. attain pure enlightenment (right perception/faith) even without hearing it from (these ten) the omniscient ... and so on up to... or his female devotee (upaasika).
३. [प्र. २ ] से केणटेणं भंते ! जाव नो बुझेज्जा ?
[उ. ] गोयमा ! जस्स णं दरिसणावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमे कडे भवइ से णं असोच्चा केवलिस्स वा जाव केवलं बोहिं बुझेज्जा, जस्स णं दरिसणावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमे णो कडे भवइ ॥ से णं असोच्चा केवलिस्स वा जाव केवलं बोहिं णो बुज्झेज्जा, से तेणटेणं जाव णो बुज्झेज्जा।
३. [प्र. २ ] भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा जाता है कि यावत् शुद्ध बोधि प्राप्त नहीं कर पाते? [उ. ] हे गौतम ! जिस जीव ने दर्शनावरणीय (दर्शन-मोहनीय) कर्म का क्षयोपशम किया है, वह
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| नवम शतक : इकत्तीसवाँ उद्देशक
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Ninth Shatak : Thirty First Lesson
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