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"Bhante ! Indeed that is so. Indeed that is so." With these words... and so on up to... ascetic Gautam resumed his activities. ॐ विवेचन : जीवाभिगमसूत्रगत वर्णन का सार-जीवाभिगमसूत्र के अनुसार-मुख्यतया चन्द्रमा की संख्याम जम्बूद्वीप में २, लवणसमुद्र में ४, धातकीखण्डद्वीप में १२, कालोदसमुद्र में ४२, पुष्करवरद्वीप में १४४.
आभ्यन्तर पुष्करार्द्ध में ७२ तथा मनष्यक्षेत्र में १३२, एवं पुष्करोदसमद्र में संख्यात हैं। इसके पश्चात मनष्यक्षेत्र ॐ के बाहर के वरुणवरद्वीप एवं वरुणोदसमुद्र आदि असंख्यात द्वीप-समुद्रों में यथासम्भव संख्यात एवं असंख्यात 卐 चन्द्रमा हैं और जहां एक चन्द्र है वहां एक सर्य, २८ नक्षत्र, ८८ ग्रह और ६६९७५ क्रोडा कोड 卐 एक चन्द्र का परिवार है। इसी प्रकार इन सब में सूर्य, नक्षत्र, ग्रह तथा ताराओं की संख्या भी जीवाभिगमसूत्र से
जान लेनी चाहिए। इतना विशेष है कि मनुष्यक्षेत्र में जो भी चन्द्र, सूर्य आदि ज्योतिष्कदेव हैं, वे सब चर (गति
करने वाले) हैं, जबकि मनुष्यक्षेत्र के बाहर के सब अचर (स्थिर) हैं। (जीवाभिगमसूत्र, प्रतिपत्ति ३. उद्देशक २, 卐 वृत्ति, सू. १५३. १५५, १७५-१७७, पत्र ३००, ३०३, ३२७-३३५)
Elaboration—Gist of description in Jivabhigam Sutra (mainly about number of moons)- the number of moons in Jambu Dveep-2, in Lavan Samudra-4, in Dhatakikhand Dveep-12, in Kaloda Sea-42, in Pushkaravar Dveep-144, in Abhyantar Pushkarardha-72, in Manushya Kshetra-132, and in Pushkarod Sea--countable. After this
in areas outside Manushya Kshetra including Varunavar Dveep and 41 Varunod Sea the place-specific number of moons is countable or
innumerable. In the same way the number of the suns, constellations, planets and stars should also be quoted from Jivabhigam Sutra. The
point to be specially noted is that the Stellar gods of Manushya Kshetra 4 are moving whereas those outside are stationary. (Jivabhigam Sutra, Pratipatti-3, Uddeshak-2; Vritti, Sutra 153, 155, 175-177, leaves 300,303,327-335)
॥नवम शतक : द्वितीय उद्देशक समाप्त ॥ • END OF THE SECOND LESSON OF THE NINTH CHAPTER
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भगवती सूत्र (३)
(310)
Bhagavati Sutra (3) |
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