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हैं, और ज्ञानावरणीय कर्मदलिकों की अपेक्षा वे उसके कर्म परमाणु रूप अनन्त होते हैं । प्रत्येक संसारी जीव (मनुष्य के सिवाय) ८ कर्मों में से प्रत्येक कर्म के अनन्त - अनन्त परमाणुओं (अविभाग-परिच्छेदों) से युक्त होता है. तथा उनसे आवेष्टित परिवेष्टित ( अर्थात् गाढ़ रूप से चारों ओर से लिपटा हुआ-बद्ध) होता है । - ( सूत्र ३३-३६)
Elaboration-Avibhaag parichchhed-Parichchhed means part or fraction and avibhaag means indivisible. Such a minute fraction that is indivisible even to the sharp insight of an omniscient is called Avibhaag parichchhed (ultimate fraction). The phrase 'infinite ultimate fractions of y knowledge obscuring karma' conveys that the number of fractions of knowledge Jnanavaraniya karma obscures are the fractions of that karma. In terms of particulate matter of Jnanavaraniya class this number of ultimate particles is infinite. Each worldly being (other than humans) is infested, surrounded and enshrouded with infinite ultimate y particles of karmic matter of each of these eight karma species. (aphorisms 33-36)
[उ. ] गोयमा ! सिय आवेढियपरिवेढिए, सिय नो आवेढियपरिवेढिए । जइ आवेढियपरिवेढिए नियमा अणतेहिं ।
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३७. [ प्र. ] एगमेगस्स णं भंते ! जीवस्स एगमेगे जीवपएसे णाणावरणिज्जस्स कम्मस्स केवइएहिं 4 अविभागपलिच्छेदेहिं आवेढियपरिवेढिए सिया ?
३७. [ प्र. ] भगवन् । प्रत्येक जीव का प्रत्येक जीवप्रदेश ज्ञानावरणीयकर्म के कितने अविभागपरिच्छेदों से आवेष्टित-परिवेष्टित (लिपटा हुआ) है ?
[ उ. ] हे गौतम ! वह कदाचित् आवेष्टित-परिवेष्टित (लिपटा हुआ ) होता है, कदाचित् आवेष्टितपरिवेष्टित नहीं होता। यदि आवेष्टित-परिवेष्टित होता है तो वह नियमतः अनन्त अविभाग-परिच्छेदों से होता है।
37. [Q.] Bhante ! How many ultimate fractions of Jnanavaraniya karma (knowledge obscuring karma) surround and enshroud each and every soul-space-point of each living being (soul) ?
[Ans.] Gautam ! It is sometimes surrounded and enshrouded and sometimes not. When it is surrounded and enshrouded, it is so by infinite ultimate fractions as a rule.
३८. [ प्र. ] एगमेगस्स णं भंते ! नेरइयस्स एगमेगे जीवपएसे णाणावरणिज्जस्स कम्मस्स केवइएहिं अविभागपलिच्छेदेहिं आवेढियपरिवेढिते ?
[ उ. ] गोयमा ! नियमा अनंतेहिं ।
भगवती सूत्र ( ३ )
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Bhagavati Sutra (3)
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