________________
ब
फ्र
卐
卐
फफफफफफफफफफफ
5
卐
फ्र
११. [ प्र. ] भगवन् ! दर्शन की उत्कृष्ट आराधना करके जीव कितने भव ग्रहण करके सिद्ध होता है, यावत् सभी दुःखों का अन्त करता है ?
[उ.] गौतम ! (जिस प्रकार उत्कृष्ट ज्ञानाराधना के फल के विषय में कहा है) उसी प्रकार उत्कृष्ट दर्शनाराधना के ( फल के) विषय में समझना चाहिए ।
11. [Q.] Bhante ! After how many rebirths does a living being performing superlative practice of right perception/faith (Utkrisht Darshan-araadhana) attain liberation to become Siddha ... and so on up to... end all miseries ?
[Ans.] Gautam ! What has been said about (fruits of ) superlative 5 practice of right knowledge (Utkrisht Jnana-araadhana) is also true for (fruits of) superlative practice of right perception/faith.
१२. [ प्र. ] उक्कोसियं णं भंते ! चरित्ताराहणं आराहेत्ता० ?
[ उ. ] एवं चेव । नवरं अत्थेगइए कप्पातीएसु उववज्जति ।
१२. [ प्र. ] भगवन् ! चारित्र की उत्कृष्ट आराधना करके जीव कितने भव ग्रहण करके सिद्ध होता है, यावत् सभी दुःखों का अन्त करता है ?
[ उ. ] गौतम ! उत्कृष्ट ज्ञानाराधना के ( फल के) विषय में जिस प्रकार कहा था उसी प्रकार उत्कृष्ट चारित्राराधना के ( फल के) विषय में कहना चाहिए। विशेष यह है कि कितने ही जीव (इसके फलस्वरूप) कल्पातीत देवलोकों में उत्पन्न होते हैं।
12. [Q.] Bhante ! After how many rebirths does a living being performing superlative practice of right conduct (Utkrisht Chaaritraaraadhana) attain liberation to become Siddha ... and so on up to... end all miseries ?
[Ans.] Gautam ! What has been said about (fruits of) superlative practice of right knowledge (Utkrisht Jnana-araadhana) is also true for 卐 फ (fruits of) superlative practice of right conduct. The only difference is 5 that many are born as divine beings in divine realms beyond the Kalps 5 (Kalpateet).
5
க
फ्र
卐
१३. [ प्र. ] मज्झिमियं णं भंते ! णाणाराहणं आराहेत्ता कतिहिं भवग्गहणेहिं सिज्झति जाव अंतं करेति ?
[ उ. ] गोयमा ! अत्थेगइए दोच्चेणं भवग्गहणेणं सिज्झइ जाव अंतं करेति तच्चं पुण भवग्गहणं
नाइक्कमइ ।
5மிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிததததி
( 280 )
**********************************
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
卐
卐
१३. [ प्र. ] भगवन् ! ज्ञान की मध्यम-आराधना करके जीव कितने भव ग्रहण करके सिद्ध होता फ्र है यावत् सभी दुःखों का अन्त कर देता है ?
卐
भगवती सूत्र (३)
Bhagavati Sutra (3)
फ्र
www.jainelibrary.org