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३. [प्र. ] भगवन् ! वृश्चिकजाति-आशीविष का कितना सामर्थ्य है ? 4 [उ. ] गौतम ! वृश्चिकजाति-आशीविष, अर्द्ध-भरतक्षेत्र-प्रमाण शरीर को विषयुक्त-विषैला के 卐 करने या विष से व्याप्त करने में समर्थ है। इतना उसके विष का सामर्थ्य है, किन्तु सम्प्राप्ति द्वारा अर्थात् : क्रियात्मक प्रयोग द्वारा उसने न ऐसा कभी किया है, न करता है और न कभी करेगा।
3. [Q.] Bhante ! How strong is the venom of a scorpion of venomous breed (jaati-ashivish vrishchik)?
[Ans.] Gautam ! A scorpion of venomous breed (jaati-ashivish vrishchik) can harm bodies living in half the area of Bharat. Its venom is as strong as that but it did not, does not and will not ever employ all that strength.
४. [प्र. ] मंडुक्कजातिआसीविसस्सपुच्छा। [उ. ] गोयमा ! पभू णं मंडुक्कजातिआसीविसे भरहप्पमाणमेत्तं बोंदि विसेणं विसपरिगयं० । सेसं तं चेव, नो चेव जाव करिस्संति वा २।
४. [प्र. ] भगवन् ! मण्डूकजाति-आशीविष का कितना सामर्थ्य है ? + [उ. ] गौतम ! मण्डूकजाति-आशीविष अपने विष से भरतक्षेत्र-प्रमाण शरीर को व्याप्त करने में ॐ समर्थ है। शेष सब पूर्ववत् जानना, यावत् (यह उसका सामर्थ्य मात्र है), किन्तु सम्प्राप्ति से उसने कभी ॥
ऐसा किया नहीं, करता नहीं और करेगा भी नहीं। ___4. [Q.] Bhante ! How strong is the venom of a frog of venomous breed ॥ (jaati-ashivish manduk)? .
[Ans.] Gautam ! A frog of venomous breed (jaati-ashivish manduk) can harm bodies living in the whole area of Bharat. Repeat the rest... and so on up to... will not ever employ all that strength.
५. एवं उरगजातिआसीविस्स वि, नवरं जंबुद्दीवप्पमाणमेत्तं बोंदि विसेणं विसपरिगयं०। सेसं तं चेव,
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ॐ नो चेव जाव करिस्संति वा ३
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५. इसी प्रकार उरगजाति-आशीविष के सम्बन्ध में जानना चाहिए। इतना विशेष है कि वह ॥ 卐 जम्बूद्वीप-प्रमाण शरीर को विष से युक्त एवं व्याप्त करने में समर्थ है। यह उसका सामर्थ्य मात्र है, किन्तु सम्प्राप्ति से उसने ऐसा कभी किया नहीं, करता नहीं और करेगा भी नहीं।
5. The same is true for a snake of venomous breed (jaati-ashivish urag). The only difference is that it can harm bodies living in the whole area of Jambu Dveep (one hundred thousand Yojans). Its venom is as strong as that but it did not, does not and will not ever employ all that strength.
| भगवती सूत्र (३)
(2)
Bhagavati Sutra (3)
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