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ऊधमक))5555555555555555555 ॐ ९८. [प्र. ] भगवन् ! ज्ञानावरणीय-कार्मणशरीर-प्रयोगबन्ध किस कर्म के उदय से होता है ? 1 [उ. ] गौतम ! १. ज्ञान की प्रत्यनीकता (विपरीतता या विरोध) करने से, २. ज्ञान का निह्नव 卐 (अपलाप) करने से, ३. ज्ञान में अन्तराय देने से, ४. ज्ञान से प्रद्वेष करने (ज्ञान के दोष निकालने) से,
५. ज्ञान की अत्यन्त आशातना करने से, ६. ज्ञान के विसंवादन-योग से, तथा ७. ज्ञानावरणीय-- कार्मणशरीर-प्रयोग-नामकर्म के उदय से ज्ञानावरणीय कार्मणशरीर-प्रयोगबन्ध होता है।
98. IQ.1 Bhante ! What karma is responsible for Jnanavaraniyakarman-sharira-prayoga-bandh (bondage related to knowledge obscuring karmic body formation)?
(Ans.) Gautam ! Jnanavaraniya-karman-sharira-prayoga-bandh (bondage related to knowledge obscuring karmic body formation) is
acquired through (1) antagonism for knowledge (jnana), (2) misuse of i knowledge, (3) obstructing knowledge, (4) showing contempt for knowledge, (5) distorting knowledge and (6) imparting wrong knowledge as well as through fruition (udaya) of Jnanavaraniya-karman-shariraprayoga-naam-karma (karma responsible for knowledge obscuring
karmic body formation). म ९९. [प्र. ] दरिसणावरणिज्जकम्मासरीरप्पयोगबंधे णं भंते ! कस्स कम्मस्स उदएणं ? 卐 [उ. ] गोयमा ! दंसणपडिणीययाए एवं जहा णाणावरणिज्जं, नवरं 'दसण' नाम घेत्तत्वं जाव दंसणविसंवादणाजोगेणं दरिसणावरणिज्जकम्मासरीरप्पयोगनामाए कम्मस्स उदएणं जाव प्पओगबंधे।
९९. [प्र. ] भगवन् ! दर्शनावरणीय कार्मणशरीर प्रयोगबन्ध किस कर्म के उदय से होता है ? म [उ. ] गौतम ! दर्शन की प्रत्यनीकता से, इत्यादि जिस प्रकार ज्ञानावरणीय-कार्मणशरीर+ प्रयोगबन्ध के कारण कहे गये हैं, उसी प्रकार दर्शनावरणीय-कार्मणशरीर-प्रयोगबन्ध के भी कारण
जानने चाहिए। विशेष अन्तर इतना ही है कि यहाँ ('ज्ञान' के स्थान में) 'दर्शन' शब्द कहना चाहिए; 卐 यावत्- 'दर्शन-विसंवादन-योग से, तथा दर्शनावरणीय-कार्मणशरीर-प्रयोग-नामकर्म के उदय से दर्शनावरणीय-कार्मणशरीर-प्रयोगबन्ध होता है'; यहाँ तक कहना चाहिए।
99. (Q.) Bhante ! What karma is responsible for Darshanavaraniyarman-sharira-prayoga-bandh (bondage related to perception/faith obscuring karmic body formation) ? i [Ans.] Gautam ! Darshanavaraniya-karman-sharira-prayoga-bandh (bondage related to perception/faith obscuring karmic body formation) is acquired through (1) antagonism for perception/faith (darshan) ... and so on repeating what has been said with regard to knowledge and replacing in knowledge with perception/faith up to ... imparting wrong perception/
卐55555555555555555555555555555555555555555555)))
| भगवती सूत्र (३)
(250)
Bhagavati Sutra (3)
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