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८१. [प्र. ] जीवस्स णं भंते ! अणुत्तरोववातिय० पुच्छा।
[उ. ] गोयमा ! सव्वबंधंतरं जहन्नेणं एक्कतीसं सागरोवमाई वासपुहत्तमभहियाई, उक्कोसेणं संखेज्जाइं सागरोवमाई। देसबंधंतरं जहन्नेणं वासपुहत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जाइं सागरोवमाई।
८१. [प्र. ] भगवन् ! कोई अनुत्तरौपपातिक देवरूप में रहा हुआ जीव वहाँ से च्यवकर, , अनुत्तरौपपातिक देवों के अतिरिक्त किन्हीं अन्य स्थानों में उत्पन्न हो, और वहाँ से मरकर पुनः अनुत्तरौपपातिक देवरूप में उत्पन्न हो, तो उसके वैक्रियशरीर-प्रयोगबंध का अन्तर कितने काल का के होता है?
[उ. ] गौतम ! उसके सर्वबन्ध का अन्तर जघन्यतः वर्षपृथक्त्व-अधिक इकतीस सागरोपम काम और उत्कृष्टतः संख्यातसागरोपम का होता है। उसके देशबंध का अन्तर जघन्यतः वर्षपृथक्त्व का और उत्कृष्टतः संख्यात सागरोपम का होता है।
81. (Q.) What is the intervening period between one Anuttaraupapatik-devlok-vaikriya-sharira-prayoga-bandh (bondage related to transmutable body formation of divine beings of the Anat dimension) and the next in case of the divine being of the Anuttaraupapatik-devlok taking rebirth as some other class of living being and taking rebirth again as a divine being of the Anuttaraupapatik-devlok ?
(Ans.) Gautam ! This intervening period for the bondage of the whole (sarva-bandh) is a minimum of Varsh-prithakatva (two to nine years) plus thirty one Sagaropam and a maximum of countable Sagaropam. The bondage of a part (desh-bandh) is a minimum of Varsh-prithakatva (two to nine years) and a maximum of countable Sagaropam. अल्प-बहुत्व COMPARATIVE NUMBER
८२. [प्र. ] एएसि णं भंते ! जीवाणं वेउब्वियसरीरस्स देसबंधगाणं, सव्वबंधगाणं, अबंधगाण य कयरे कयरेहितो जाव विसेसाहिया वा ? __[उ. ] गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा वेउब्वियसरीरस्स सब्वबंधगा, देसबंधगा असंखेज्जगुणा, अबंधगा अणंतगुणा।
८२. [प्र. ] भगवन् ! वैक्रियशरीर के इन देशबन्धक, सर्वबन्धक और अबन्धक जीवों में, कौन किनसे कम, अधिक, तुल्य या विशेषाधिक हैं ?
[उ. ] गौतम ! इनमें सबसे थोड़े वैक्रियशरीर के सर्वबन्धक जीव हैं; उनसे देशबन्धक जीव में असंख्यातगुणे हैं और उनसे अबन्धक जीव अनन्तगुणे हैं।
अष्टम शतक : नवम उद्देशक
(239)
Eighth Shatak : Ninth Lesson
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