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७०. असुरकुमार - नागकुमार० जाव अणुत्तरोववाइयाणं जहा नेरइयाणं, नवरं जस्स जा ठिई सा
भाणियव्वा जाव अणुत्तरोववाइयाणं सव्वबंधे एक्कं समयं; देसबंधे जहन्त्रेणं एक्कतीसं सागरोवमाई
प्रतिसमयूणाई, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई समयूणाई ।
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चाहिए।
5 यावत् - अनुत्तरौपपातिक देवों का सर्वबन्ध एक समय तक रहता है तथा देशबन्ध जघन्य तीन समय कम इकतीस सागरोपम और उत्कृष्ट एक समय कम तेतीस सागरोपम तक का होता है।
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७०. असुरकुमार, नागकुमार, यावत्-अनुत्तरौपपातिक देवों का कथन नैरयिकों के समान जानना परन्तु इतना विशेष है कि जिसकी जितनी स्थिति हो, उतनी कहनी चाहिए.
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70. Divine beings including Asur Kumar, Naag Kumar ... and so on up to ... Anuttaraupapatik gods follow the pattern of infernal beings. difference is that time limit corresponds to the genus specific lifeand so on up to for Anuttaraupapatik gods the bondage of 5 the whole (sarva- bandh) lasts just for one Samaya. The bondage of a part (desh-bandh) lasts for a minimum of three Samayas short of thirty one Sagaropam and a maximum of one Samaya short of thirty three Sagaropam.
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अन्तर-काल INTERVENING PERIOD
७१. [ प्र. ] वेउव्वियसरीरप्पयोगबंधंतरं णं भंते ! कालओ केवच्चिरं होइ ?
[ उ. ] गोयमा ! सव्वबंधंतरं जहन्त्रेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं अणंतं कालं, अणंताओ जाव आवलियाए असंखेज्जइ भागो । एवं देसबंधंतरं पि ।
७१. [ प्र. ] भगवन् ! वैक्रियशरीर-प्रयोगबन्ध का अन्तर कालतः कितने काल का होता है ? [उ. ] गौतम ! इसके सर्वबन्ध का अन्तर जघन्यतः एक समय और उत्कृष्टतः अनन्तकाल है - अनन्त उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी यावत्-आवलिका के असंख्यातवें भाग के समयों के बराबर पुद्गलपरावर्तन तक रहता है । इसी प्रकार देशबन्ध का अन्तर भी जान लेना चाहिए।
७२. [ प्र. ] वाउक्काइयवेउब्वियसरीर० पुच्छा ।
[उ. ] गोयमा ! सव्वबंधंतरं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पलि ओवमस्स असंखेज्जइभागं । एवं देसबंधंतरं पि ।
भगवती सूत्र (३)
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71. [Q.] What is the intervening period between one bondage and the 5 next in case of the transmutable body (vaikriya sharira)? 卐
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[Ans.] Gautam ! This intervening period for the bondage of the whole (sarva-bandh) is a minimum of one Samaya and a maximum of infinite time-infinite progressive and regressive cycles of time... and so on up to... Pudgal-paravartan periods equivalent to the number of Samayas in uncountable fraction of one Avalika. The same is true for the bondage of a part (desh-bandh).
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Bhagavati Sutra (3)
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