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regressive cycles of time. It is equivalent to uncountable Pudgal
paravartan (time taken by a soul to touch each and every matter particle 卐 in the Lok) involving uncountable Lok (occupied space) in terms of area. 卐
In the same way this intervening period for the bondage of a part (deshbandh) is a minimum of one Samaya more than Kshullak-bhava-grahan (time taken in taking rebirths of shortest life-span specific to the body
type) and a maximum same as mentioned with regard to earth-bodied 卐 beings (or infinite time. ... and so on up to ... number of Samayas in
uncountable fraction of one Avalika). ॐ ५०. [प्र. ] एएसि णं भंते ! जीवाणं ओरालियसरीरस्स देसबंधगाणं सबबंधगाणं अबंधगाणं य + कयरे कयरेहिंतो जाव विसेसाहिया वा ? म [उ. ] गोयमा ! सम्बत्थोवा जीवा ओरालियसरीरस्स सव्वबंधगा, अबंधगा विसेसाहिया, देसबंधगा असंखेज्जगुणा।
५०. [प्र. ] भगवन् ! औदारिकशरीर के इन देशबन्धक, सर्वबन्धक और अबन्धक जीवों में कौन किनसे अल्प, बहुत (अधिक), तुल्य और विशेषाधिक हैं ?
[उ. ] गौतम ! सबसे थोड़े (अल्प) औदारिकशरीर के सर्वबन्धक जीव हैं (उत्पात के प्रथम समय वाले), उनसे अबन्धक जीव विशेषाधिक हैं (विग्रह गतिक और सिद्ध) और उनसे असंख्यातगुणे म देशबन्धक जीव हैं (प्रथम समय के अतिरिक्त सभी)
50. [Q.] Bhante ! Of these beings with bondage related to gross physical body (Audarik-sharira-bandh), which are comparatively less, more, equal and much more—those with bondage of a part (deshbandhak) or those with that of the whole (sarva-bandhak) or those with no-bondage (abandhak) at all ?
(Ans.] Gautam ! Minimum are those with bondage of the whole (sarva-bandh), much more than these are those with bondage of a part (desh-bandh) and uncountable times more than these are those with no bondage at all.
विवेचन : प्रस्तुत २७ सूत्रों (सू. २४ से ५० तक) में शरीरप्रयोगबन्ध के विषय में निम्नोक्त तथ्यों का निरूपण किया गया है
१. औदारिक आदि के भेद से शरीरप्रयोगबन्ध ५ प्रकार का है। २. एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक औदारिकशरीर-प्रयोगबन्ध पाँच प्रकार का है। ३. एकेन्द्रिय-औदारिकशरीर-प्रयोगबन्ध पृथ्वीकाय से लेकर वनस्पतिकाय तक ५ प्रकार के हैं। ४. द्वीन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय पर्याप्त, अपर्याप्त गर्भज मनुष्य तक औदारिकशरीर-प्रयोगबन्ध समझना चाहिए।
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855555555555555555555555555555555555555555555555558
अष्टम शतक : नवम उद्देशक
(221)
Eighth Shatak: Ninth Lesson
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