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aggregate enters into bondage with another having two times or more smoothness and a rough aggregate enters into bondage with another having two times or more roughness. A smooth aggregate enters into bondage with another having roughness of equal or unequal intensity except for those with minimum intensity of both. In other words aggregates with one unit of smoothness or roughness cannot have mutual bondage. However, they can enter bondage with other aggregates with equal and unequal smoothness or roughness but of greater intensity. Aggregates with equal smoothness do not bond together and the same is true for roughness of equal intensity. (Vritti, leaf 395; Tattvarth Sutra, Ch. 5)
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नागा111
प्रयोगबन्ध : प्रकार, भेद-प्रभेद तथा उनका स्वरूप PRAYOGA BANDH : TYPES AND DESCRIPTION
१२. [प्र. ] से किं तं पयोगबंधे ?
[उ. ] पयोगबंधे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा- अणाईए वा अपज्जवसिए १, सादीए वा अपज्जवसिए २, ऊ सादीए वा सपज्जवसिए ३ । तत्थ णं जे से अणाईए अपज्जवसिए से णं अट्ठण्हं जीवमज्झपएसाणं। तत्थ वि " णं तिण्हं तिण्हं अणाईए अपज्जवसिए, सेसाणं साईए। तत्थ णं जे से सादीए अपज्जवसिए से णं सिद्धाणं। # तत्थ णं जे से साईए सपज्जवसिए से णं चउबिहे पण्णत्ते, तं जहा-आलावणबंधे अल्लियावणबंधे
सरीरबंधे सरीरप्पयोगबंधे। # १२. [प्र. ] भगवन् ! प्रयोगबन्ध किस प्रकार का है ? # [उ. ] गौतम ! प्रयोगबन्ध तीन प्रकार का है। वह इस प्रकार-(१) अनादि-अपर्यवसित, -
(२) सादि-अपर्यवसित. (३) सादि-सपर्यवसित। इनमें से जो अनादि-अपर्यवसित है. वह जीव के आठ मध्य प्रदेशों का होता है। उन आठ प्रदेशों में भी तीन-तीन प्रदेशों का जो बन्ध होता है, वह अनादि-अपर्यवसित बन्ध है। शेष सभी प्रदेशों का सादि (-अपर्यवसित) बन्ध है। इनमें जो सादिअपर्यवसित बन्ध है, वह सिद्धों में होता है, तथा इनमें से जो सादि-सपर्यवसित बन्ध है, वह चार प्रकार का कहा गया है। यथा-(१) आलापन-बन्ध, (२) अल्लिकापन-(आलीन) बन्ध, (३) शरीर-बन्ध, और (४) शरीर-प्रयोग-बन्ध।
12. (Q.) Bhante ! How many types of bondage acquired by action' 4 (prayoga bandh) are said to be there ?
[Ans.] Gautam ! Bondage acquired by action (prayoga bandh) is said to be of three types-(1) anaadi-aparyavasit (without a beginning and without an end), (2) saadi-aparyavasit (with a beginning and without an end), and (3) saadi-saparyavasit (with a beginning and with an end). Of these the first, anaadi-aparyavasit bandh (bondage without a beginning $
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अष्टम शतक : नवम उद्देशक
(201)
Eighth Shatak : Ninth Lesson
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