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________________ 2559595959555555 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 फफफफफफफ 卐 卐 卐 卐 5 maximum of measurable time. This is Bhaajan pratyayik saadik visrasa bandh (storage related natural bondage). [Ans.] Gautam ! This type of bondage occurs in case of abhra (cloud formations), abhra-vriksha (clouds in shape of a tree)... and so on up to amogh (black and red lines appearing in the sky at dawn and sunset) (as mentioned in aphorism 4-5 of lesson 7 in the third Chapter of this book). This lasts for a minimum period of one Samaya and maximum of six months. This is Parinaam pratyayik saadik visrasa bandh (transformation related natural bondage). This concludes visrasa bandh (natural bondage). विवेचन : त्रिविध अनादि विस्रसाबन्ध का स्वरूप- धर्मास्तिकाय के प्रदेशों का उसी के दूसरे प्रदेशों के साथ सॉकल और कड़ी की तरह जो परस्पर एक देश से सम्बन्ध होता है, वह धर्मास्तिकाय-अन्योन्य5 अनादिविस्रसाबन्ध कहलाता है। इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय के विखसाबन्ध के विषय में समझना चाहिए। धर्मास्तिकाय के प्रदेशों का परस्पर जो सम्बन्ध होता है, वह देशबन्ध होता है, नीरक्षीरवत् सर्वबन्ध नहीं. क्योंकि यदि सर्वबन्ध माना जायेगा तो एक प्रदेश में दूसरे समस्त प्रदेशों का समावेश हो जाने से धर्मास्तिकाय एक प्रदेशरूप ही रह जायेगा, असंख्यप्रदेशरूप नहीं रहेगा; जोकि सिद्धान्त से असंगत है। अतः धर्मास्तिकाय आदि तीनों का परस्पर देशबन्ध ही होता है, सर्वबन्ध नहीं । 5 F f ११. [ प्र.] से किं तं परिणामपच्चइए ? [ उ. ] परिणामपच्चइए, जं णं अब्भाणं अब्भरुक्खाणं जहा ततियसए (स. ३, उ. ७, सु. ४ [ ५ ] जाव अमोहाणं परिणामपच्चइएणं बंधे समुप्पज्जइ जहन्त्रेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं छम्मासा । से तं परिणामपच्चइए । से त्तं सादीयवीससाबंधे। से त्तं वीससाबंधे। ११. [ प्र. ] भगवन् ! परिणाम- प्रत्ययिक-सादि - विस्रसाबन्ध किसे कहते हैं ? [उ. ] गौतम ! ( इसी सूत्र के तृतीय शतक उद्देशक ७, सूत्र ४ - ५ ) में जो बादलों (अभ्रों) का, अभ्र वृक्षों का यावत् अमोघों आदि के नाम कहे गये हैं, उस सबका, परिणाम - प्रत्ययिक (सादि - विस्रसा) बन्ध समुत्पन्न होता है। वह बन्ध जघन्यतः एक समय तक और उत्कृष्टतः छह मास तक रहता है। यह हुआ परिणाम- प्रत्ययिक - सादि - विस्रसाबन्ध का स्वरूप। और यह हुआ विस्रसाबन्ध का कथन । 55555555952 11. [Q.] Bhante ! What is this Parinaam pratyayik saadik visrasa bandh (transformation related natural bondage)? f त्रिविध- सादिविस्रसाबन्ध का स्वरूप-बन्धन अर्थात् विवक्षित स्निग्धता आदि गुणों के निमित्त से परमाणुओं 5 का जो बन्ध सम्पन्न होता है, उसे बन्धन - प्रत्ययिक बन्ध कहते हैं। भाजन का अर्थ है - आधार । उसके निमित्त से जोबन्ध सम्पन्न होता है, वह भाजन- प्रत्ययिक है। जैसे-घड़े में रखी हुई पुरानी मदिरा गाढ़ी हो जाती है, पुराने गुड़ और पुराने चावलों का पिण्ड बंध जाता है, वह भाजन- प्रत्ययिक बन्ध कहलाता है। परिणाम अर्थात् म रूपान्तर ( हो जाने ) के निमित्त से जो बन्ध होता है, उसे परिणाम - प्रत्ययिक बन्ध कहते हैं। 5 अष्टम शतक नवम उद्देशक ( 199 ) Jain Education International For Private & Personal Use Only Eighth Shatak: Ninth Lesson फफफफफ 25 5 5 5 555 5555 5 5 55 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 55 5 5 5 5595552 卐 www.jainelibrary.org
SR No.002904
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2008
Total Pages664
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_bhagwati
File Size21 MB
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