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३. [ प्र. ] अणाईयवीससाबंधे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ?
[ उ.] गोयमा ! तिविहे पण्णत्ते, तं जहा - धम्मत्थिकाय अन्नमन्न अणादीयवीससाबंधे, अधम्मत्थिकाय अन्नमन्त्र अणादीय- वीससाबंधे, आगासत्थिकाय अन्नमन्न अणादीयवीससाबंधे।
३. [ प्र. ] भगवन् ! अनादिक विस्रसाबन्ध कितने प्रकार का कहा गया है ?
[ उ. ] गौतम ! वह तीन प्रकार का कहा गया है - ( १ ) धर्मास्तिकाय का अन्योन्य-अनादिकविस्रसाबन्ध, (२) अधर्मास्तिकाय का अन्योन्य- अनादि- विस्रसाबन्ध, और (३) आकाशास्तिकाय का अन्योन्य-अनादिक-विस्रसाबन्ध ।
3. [Q.] Bhante ! How many types of Anaadik visrasa bandh ( natural bondage without a beginning) are said to be there?
[Ans.] Gautam ! That is said to be of three types—(1) Dharmastikaaya anyonya-anaadik visrasa bandh (motion entity related mutually interdependent natural bondage without a beginning), (2) Adharmastikaaya anyonya-anaadik visrasa bandh (rest entity related mutually interdependent natural bondage without a beginning), and (3) Akaashastikaaya anyonya-anaadik visrasa bandh (space entity related mutually interdependent natural bondage without a beginning).
४. [ ] धम्मत्थिकाय अन्नमन्न अणादीयवीससाबंधे णं भंते ! किं देसबंधे सव्वबंधे ?
[ उ. ] गोयमा ! देसबंधे, नो सव्वबंधे।
४. [प्र.] भगवन् ! धर्मास्तिकाय का अन्योन्य-अनादि- विस्रसाबन्ध क्या देशबन्ध है या सर्वबन्ध है ?
[ उ. ] गौतम ! यह देशबन्ध है, सर्वबन्ध नहीं ।
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4. [Q.] Bhante ! Is this Dharmastikaaya anyonya-anaadik visrasa bandh (motion entity related mutually interdependent natural bondage without a beginning) a bondage in part (desh bandh) or whole (sarva bandh)?
[Ans.] Gautam ! It is bondage in part (desh bandh) and not whole (sarva bandh).
५. एवं अधम्मत्थिकाय अन्नमन्न अणादीयवीससाबंधे वि, एवं आगासत्थिकाय - अन्नमन्त्र अणादीयवी- ५ ससाबंधे वि।
५. इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय के अन्योन्य- अनादि - विखसाबन्ध एवं आकाशास्तिकाय के अन्योन्य- अनादि- विस्रसाबन्ध के विषय में भी समझ लेना चाहिए। ( अर्थात् ये भी देशबन्ध हैं, सर्वबन्ध नहीं ।)
भगवती सूत्र ( ३ )
(196)
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Bhagavati Sutra (3)
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