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________________ B5555555555555555555555555555555555 55555555555555555555555555555555555555555555555 ॐ [उ. ] गौतम ! वे स्पृष्ट क्रिया करते हैं, अस्पृष्ट क्रिया नहीं करते; यावत् नियमतः छहों दिशाओं में + स्पृष्ट क्रिया करते हैं। 44. (Q.) Bhante ! Are these activities of the suns effective when in 4 contact or when not in contact ? (Ans.] Gautam ! These activities are effective when in contact and not when not in contact. ... and so on up to ... the same is true for all the six directions. ४५. [प्र. ] जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे सूरिया केवतियं खेत्तं उड्ढे तवंति, केवतियं खेत्तं अहे तवंति, ॐ केवतियं खेत्तं तिरियं तवंति ? __[उ. ] गोयमा ! एगं जोयणसयं उड्ढं तवंति, अट्ठारस जोयणसयाई अहे तवंति, सीयालीसं + जोयणसहस्साई दोणि तेवढे जोयणसए एक्कवीसं च सट्ठिभाए जोयणस्स तिरियं तवंति। ॐ ४५. [ प्र. ] भगवन् ! जम्बूद्वीपे में सूर्य कितने ऊँचे क्षेत्र को तपाते हैं, कितने नीचे क्षेत्र को तपाते 卐 हैं, और कितने तिरछे क्षेत्र को तपाते हैं ? [उ. ] गौतम ! वे सौ योजन ऊँचे क्षेत्र को तप्त करते हैं, अठारह सौ योजन नीचे के क्षेत्र को तप्त 卐 करते हैं. और सैंतालीस हजार दो सौ तिरेसठ योजन तथा एक योजन के साठिया इक्कीस भाग (४७,२६३३०) तिरछे क्षेत्र को तप्त करते हैं। 45. IQ.) Bhante ! In Jambudveep how much higher area, lower area and transverse (middle) area do these suns warm ? [Ans.] Gautam ! They warm hundred Yojan higher area, eighteen 4 hundred Yojan lower area and forty-seven thousand two hundred sixty three and twenty-one upon sixty Yojan transverse area (47,263- 21/60). - विवेचन : पर्व सत्रों में बताया जा चका है. जम्बद्वीप में दो सर्य (दो चन्द्र) निरन्तर गतिशी ॐ उदय-अस्त का व्यवहार सिर्फ हमारी क्षेत्रीय दृष्टि से होता है। जब सूर्य निषध पर्वत के ईशानकोण में आता है - तब दक्षिण भरत में सूर्योदय तथा पूरे अर्ध-जम्बूद्वीप का वलयाकार भ्रमण करता हुआ निषध पर्वत के आग्नेयकोण में पहुँचता है, तब हमारे क्षेत्र की अपेक्षा ‘सूर्यास्त' माना जाता है। सूर्य विमान के चार क्षेत्र के वलयाकार हैं, परन्तु उसका प्रकाश क्षेत्र तिरछा होता है। जब सर्वाभ्यन्तर मण्डल में सूर्य होता है, तब पूर्व卐 पश्चिम में उसका किरण विस्तार (आतप क्षेत्र ४७.२६३११ योजन) होता है। उत्तर-दक्षिण में मेरु की तरफ ४४,८२० योजन, समुद्र की तरफ ३३,३३३१ योजन होता है। सूर्य का ऊर्ध्व किरण विस्तार १०० योजन, * नीचे १,८०० योजन (८०० योजन समभूतल) और समभूतल से १ हजार योजन नीचे तक का क्षेत्र प्रकाशित 卐 होता है। उदय के समय तिरछा होने से सूर्य का तेज मंद होता है, अतः वह निकट दृष्टिगोचर होता है, मध्यान्ह के समय सीधे होने से, अपने तेज से पूर्णरूप में तपने लगता है अर्थात् तीव्र होने से दूर मालूम होता है। वास्तव में 卐 उदय, अस्त और मध्यान्ह के समय सूर्य समभूतल भूमि से ८०० योजन ही दूर होता है। 卐5555555555555555555555555555555555555555555) | भगवती सूत्र (३) (192) Bhagavati Sutra (3) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002904
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2008
Total Pages664
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_bhagwati
File Size21 MB
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