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Darshan-pratyaneek (maligner of perception/faith) and Chaaritrapratyaneek (maligner of spiritual conduct). (Vritti, leaf 382) निर्ग्रन्थ के लिए आचरणीय पंचविध व्यवहार EVE TYPES OF ASCETIC BEHAVIOUR
८. [प्र. ] कइविहे णं भंते ! ववहारे पण्णत्ते ?
[उ. ] गोयमा ! पंचविहे ववहारे पण्णत्ते, तं जहा-आगम-सुत-आणा-धारणा-जीए। जहा से फ़ तत्थ आगमे सिया, आगमेणं ववहारं पट्टवेज्जा। णो य से तत्थ आगमे सिया; जहा से तत्थ सुते सिया, सुएणं ववहारं पट्टवेज्जा। णो य से तत्थ सुए सिया; जहा से तत्थ आणा सिया, आणाए ववहारं पट्ठवेज्जा। णो य से तत्थ आणा सिया; जहा से तत्थ धारणा सिया, धारणाए ववहारं पट्टवेज्जा। णो य से तत्थ : धारणा सिया; जहा से तत्थ जीए सिया जीएणं ववहारं पट्टवेज्जा। इच्चेएहिं पंचहिं ववहारं पट्ठवेज्जा, तं जहा-आगमेणं सुएणं आणाए धारणाए जीएणं। जहा जहा से आगमे सुए आणा धारणा जीए तहा तहा है ववहारं पट्ठवेज्जा।
८. [ प्र. ] भगवन् ! व्यवहार (यथोचित सम्यक् प्रवृत्ति-निवृत्ति) कितने प्रकार का कहा है ? i [उ. ] गौतम ! व्यवहार पाँच प्रकार का कहा है। (१) आगम-व्यवहार, (२) श्रुत-व्यवहार, । (३) आज्ञा-व्यवहार, (४) धारणा-व्यवहार, और (५) जीत-व्यवहार। इन पाँच प्रकार के व्यवहारों में
से जिस साधु के पास आगम (केवलज्ञान, मनःपर्ययज्ञान, अवधिज्ञान, चौदह पूर्व, दस पूर्व अथवा नौ । पूर्व का ज्ञान) हो, उसे उस आगम से व्यवहार (प्रवृत्ति-निवृत्ति) करना चाहिए। जिसके पास आगम न । हो, उसे श्रुत से व्यवहार चलाना चाहिए। जहाँ श्रुत न हो वहाँ आज्ञा से, यदि आज्ञा भी न हो तो जिस | प्रकार की धारणा हो, उस धारणा से, कदाचित् धारणा भी न हो तो जिस प्रकार का जीत (परम्परा) । हो, उस जीत से व्यवहार चलाना चाहिए। इस प्रकार इन पाँचों आगम, श्रुत, आज्ञा, धारणा और जीत | से (साधु-साध्वी को) व्यवहार चलाना चाहिए। जिसके पास जिस-जिस प्रकार से आगम, श्रुत, आज्ञा,
धारणा और जीत, इन पाँच व्यवहारों में से जो व्यवहार हो, उसे उस-उस प्रकार से व्यवहार चलाना (प्रवृत्ति-निवृत्ति करना) चाहिए। ___8. [Q.] Bhante ! How many types of ascetic-behaviour (vyavahaar) are there?
[Ans.] Gautam ! Ascetic-behaviour (vyavahaar) is said to be of five kinds-(1) Agam-vyavahaar, (2) Shrut-vyavahaar, (3) Ajna-vyavahaar, (4) Dhaarana-vyavahaar, and (5) Jeet-vyavahaar. Out of these five the ascetic who knows the canon (Agams including the fourteen, ten or nine Purvas; or who is endowed with Keval-jnana, Manah-paryav-jnana or Avadhi-jnana) should behave according to the canon (Agam-vyavahaar). One who does not have the knowledge of the canon should behave according to the scriptures or texts other than the said Agams (Shrutvyavahaar). One who does not have the knowledge of scriptures (Shrut)
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अष्टम शतक : अष्टम उद्देशक
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Eighth Shatak : Eighth Lesson
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