SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 201
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 卐55555555555555555555553 ७. [प्र. ] भावं णं भंते ! पुडुच्च० पुच्छा। [उ. ] गोयमा ! तओ पडिणीया पण्णत्ता, तं जहा-नाणपडिणीए, दसणपडिणीए, चरित्तपडिणीए। ७. [प्र. ] भगवन् ! भाव की अपेक्षा कितने प्रत्यनीक कहे हैं ? ___ [उ. ] गौतम ! तीन प्रत्यनीक कहे हैं। यथा-(१) ज्ञान-प्रत्यनीक, (२) दर्शन–प्रत्यनीक, और (३) चारित्र-प्रत्यनीक। 7. (Q.) Bhante ! Relative to bhaava (spiritual state) how many 卐 adversaries (here it conveys 'maligners') are said to be there? [Ans.) Gautam ! There are said to be three adversaries-(1) Jnanapratyaneek (maligner of knowledge), (2) Darshan-pratyaneek (maligner 4 of perception/faith) and (3) Chaaritra-pratyaneek (maligner of spiritual 41 conduct). ___विवेचन : प्रत्यनीक-प्रतिकूल आचरण करने वाला विरोधी, या द्वेषी 'प्रत्यनीक' कहलाता है। गुरु प्रत्यनीक-आचार्य, उपाध्याय और स्थविर ये तीन गुरु होते हैं। अर्थ के व्याख्याता आचार्य, सूत्र के दाता उपाध्याय तथा वय, श्रुत और दीक्षा-पर्याय की अपेक्षा वृद्ध व गीतार्थ साधु स्थविर कहलाते हैं। ६० वर्ष से अधिक उम्र वाले वय स्थविर, आचारांग निशिध-समवाय आदि अंगों को जानने वाले श्रुत स्थविर और २० वर्ष की दीक्षा पर्याय वाले पर्याय स्थविर कहलाते हैं। इनके दोष देखना, अहित करना, उनके वचनों का अपमान के करना, उनकी वैयावृत्य न करना आदि प्रतिकूल व्यवहार करने वाले इनके 'प्रत्यनीक' कहलाते हैं। गति-प्रत्यनीक-मनुष्य आदि गति की अपेक्षा प्रतिकूल आचरण करने वाले गति-प्रत्यनीक हैं। भइहलोक-मनुष्य-पर्याय का प्रत्यनीक, जो अज्ञानतापूर्वक इन्द्रिय-विषयों के प्रतिकूल आचरण करता है। परलोक-जन्मान्तर-प्रत्यनीक वह जो परलोक सुधारने के बजाय केवल इन्द्रियविषयासक्त रहता है। उभयलोक-जो दोनों लोक सुधारने के बदले कुकर्म करके दोनों लोक बिगाड़ता है। समूह-प्रत्यनीक-यहाँ साधु-समुदाय की अपेक्षा तीन प्रकार के समूह बताये हैं-कुल, गण और संघ। एक आचार्य की सन्तति 'कुल', परस्पर धर्मस्नेह सम्बन्ध रखने वाले तीन कुलों का समूह 'गण' और ज्ञान-दर्शनम चारित्र गुणों से सम्पन्न श्रमणों का समुदाय 'संघ' कहलाता है। इन तीनों के विपरीत आचरण करने वाले क्रमशः ॥ कुल-प्रत्यनीक, गण-प्रत्यनीक और संघ–प्रत्यनीक कहलाते हैं। ___अनुकम्प्य-प्रत्यनीक-अनुकम्पा करने योग्य-अनुकम्प्य साधु तीन हैं-तपस्वी, ग्लान (रुग्ण) और शैक्ष। इन तीनों की आहारादि द्वारा सेवा नहीं करके इनके प्रतिकूल आचरण या व्यवहार करने वाले प्रत्यनीक कहलाते हैं। श्रुत-प्रत्यनीक-श्रुत (शास्त्र) के विरुद्ध कथन करना, श्रुत का अवर्णवाद बोलना श्रुत-प्रत्यनीक है। श्रुत तीन प्रकार के होने के कारण श्रुत-प्रत्यनीक के भी क्रमशः सूत्र-प्रत्यनीक अर्थ-प्रत्यनीक और तदुभयप्रत्यनीक, ये तीन भेद हैं। भाव-प्रत्यनीक-क्षायिकादि भावों के प्रतिकूल आचरणकर्ता भाव-प्रत्यनीक है। ज्ञान, दर्शन और चारित्र, ये है तीन भाव हैं। (वृत्ति, पत्रांक ३८२) 听听听听听听听听听听 $$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$ hhhhhhh | अष्टम शतक : अष्टम उद्देशक (155) Eighth Shatak: Eighth Lesson 3555555555555555555555555555555 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002904
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2008
Total Pages664
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_bhagwati
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy