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१९. [प्र. ] भगवन् ! एक नैरयिक जीव, (दूसरे जीवों के) औदारिक शरीरों की अपेक्षा कितनी क्रिया वाला होता है? _[उ. ] गौतम ! जिस प्रकार प्रथम दण्डक (सू. १५ से १७) में कहा गया है, उसी प्रकार यह दण्डक भी सारा का सारा यावत् वैमानिक पर्यन्त कहना चाहिए; परन्तु मनुष्य का कथन सामान्य (औधिक) जीवों की तरह (सू. १८ में कहे अनुसार) जानना चाहिए।
19. (Q.) Relative to the gross physical bodies (audarik sharira) of other beings, how many activities an infernal being is capable of getting involved in ?
[Ans.) What has been stated with regard to the first group (aphorisms 15-17) should also be repeated for this group up to Vaimani beings. However, the statement for human beings should follow the pattern of the general statement (aughik) about living beings (aphorism 18).
२०. [प्र. ] जीवा णं भंते ! ओरालियसरीराओ कतिकिरिया ? [उ. ] गोयमा ! सिय तिकिरिया जाव सिय अकिरिया।
२०. [प्र. ] भगवन् ! बहुत-से जीव, दूसरे के एक औदारिक शरीर की अपेक्षा कितनी क्रिया वाले होते हैं ?
[उ. ] गौतम ! वे कदाचित् तीन क्रिया वाले, कदाचित् चार क्रिया वाले और कदाचित् पाँच क्रिया वाले होते हैं, तथा कदाचित् अक्रिय भी होते हैं।
20. [Q.] Relative to the gross physical body (audarik sharira) of another being, how many activities many living beings are capable of getting involved in ?
[Ans.] Gautam ! They are capable of getting involved sometimes in three activities, sometimes in four, sometimes in five and sometimes in no activity at all.
२१. [प्र. ] नेरइया णं भंते ! ओरालियसरीराओ कतिकिरिया ?
[उ. ] एवं एसो वि जहा पढमो दंडओ (सु. १५-१७) तहा भाणियव्वो जाव वेमाणिया, नवरं मणुस्सा जहा जीवा (सु. २०)।
२१. [प्र. ] भगवन् ! बहुत-से नैरयकि जीव, दूसरे के एक औदारिक शरीर की अपेक्षा कितनी क्रिया वाले होते हैं ? _ [उ. ] गौतम ! जिस प्रकार प्रथम दण्डक (सू. १५ से १७ तक) में कहा गया है, उसी प्रकार यह (दण्डक) भी यावत् वैमानिक-पर्यन्त कहना चाहिए। विशेष यह है कि मनुष्यों का कथन औधिक जीवों की तरह (सू. १८ के अनुसार) जानना चाहिए।
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अष्टम शतक : छटा उद्देशक
(133)
Eighth Shatak: Sixth Lesson |
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