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________________ 19955453 35555555555555555555))))))))) अन्यतीर्थिक साधुओं से संवाद करते स्थविर साधुओं का वर्णन अभिव्यक्त है, जो अन्यतीर्थिकों को निरुत्तर करके जैनधर्म की श्रेष्ठता और सर्वोपरिता सिद्ध करते हैं। नवम उद्देशक में सादि-अनादि, प्रयोग-विलसा आदि बंध के भेद-प्रभेद सविस्तार दर्शाये गये हैं। ज्योतिषी-वैमानिक देव, कर्म प्रकृति, ज्ञान,दर्शन, चारित्र की आराधना और कार्मण वर्गणाओं के विषय के साथ आठवाँ शतक पूर्ण होता है। इस प्रकार आठवें शतक में सृष्टिवाद, ज्ञान, सूक्ष्म परिमाणु विज्ञान एवं कर्म के अनेक सिद्धान्तों का वर्णन हुआ है। 9वें शतक में प्रथम दो उद्देशकों में जम्बूद्वीप व ज्योतिष्क देवों का संक्षिप्त वर्णन है। फिर लवण समुद्र में थोड़े-थोड़े अंतर पर रहे 28 अन्तर्वीप (युगलिक मनुष्यों के क्षेत्र) 28 उद्देशकों में व्यवहत हैं। केवली की वाणी सुने बिना ही केवली होने वाले 'असोच्चा केवली' का भी सरसता और सरलता के साथ 31वें उद्देशक में वर्णन हुआ है। बत्तीसवें उद्देशक में भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा के ऋजु प्राज्ञ गांगेय अणगार का भगवान महावीर से मिलन, उनकी जिज्ञासा का समाधान, भगवान महावीर के पास दीक्षा और अंत में मोक्ष गमन । तेतीसवें उद्देशक में भगवान महावीर के प्रथम माता-पिता ऋषभदत्त और देवानंदा का भगवान के पास आना, दीक्षा लेना और अंत में मोक्ष जाना व जमालिकुमार, जमालि अणगार, उनकी मिथ्या प्ररूपणा, उग्र तपश्चर्या और अंत में किल्विषी देवों में उत्पत्ति अभिदर्शित है। इन सभी कथाओं का रोचक, विस्तृत और हृदय स्पर्शी वर्णन 9वें शतक में परिलक्षित है। मूल सूत्र पाठ के भावानुवाद के साथ जहाँ-जहाँ आवश्यकता हुई, वहाँ-वहाँ संक्षिप्त विवेचन भी हमने किया है। क्योंकि ऐसे बहुत से दुरूह विषय हैं जिनका विवेचन होना आवश्यक है, बिना इसके पाठकवृन्द उस विषय को समझ पाने में प्रायः असमर्थ होते हैं। आगमकार ने अनेक स्थानों पर प्रज्ञापनासूत्र का सन्दर्भ देखने की सूचना देकर सामग्री को बहुत ही संक्षिप्त करने का सत्प्रयास किया है। किन्तु हमने प्रज्ञापनासूत्र का वह अंश भी सार रूप में यहाँ प्रस्तुत कर दिया है, इतना ही नहीं महत्वपूर्ण विषयों को विषयानुरूप रंगीन भावपूर्ण चित्रों के माध्यम से समझाने का भी सुप्रयास किया गया है। आशा है पाठकों व स्वाध्यायियों के लिए ये चित्र परम उपयोगी सिद्ध होंगे। यहाँ हम एक बात कहना चाहते हैं कि भगवती सूत्र ज्ञान का विशाल भण्डार है। सुज्ञ पाठक इसका स्वाध्याय गम्भीरता से करें। यदि कोई विषय-विवेचन आदि पढ़ने के 955555555555555555555555555555555555555555558 (8) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002904
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2008
Total Pages664
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_bhagwati
File Size21 MB
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