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# विवेचन : प्रस्तुत ७ सूत्रों में पर्यायद्वार के माध्यम से ज्ञान और अज्ञान की पर्यायों तथा उनके अल्पबहुत्व म का निरूपण किया गया है। - पर्याय : भिन्न-भिन्न अवस्थाओं के विशेष भेदों को ‘पर्याय' कहते हैं। पर्याय के दो भेद हैं-(१) स्वपर्याय,
और (२) परपर्याय। क्षयोपशम की विचित्रता से मतिज्ञान के अवग्रह आदि अनन्त भेद होते हैं, जो स्वपर्याय 5 कहलाते हैं। अथवा मतिज्ञान के विषयभूत ज्ञेयपदार्थ अनन्त होने से उन ज्ञेयों के भेद से ज्ञान के भी अनन्त भेद
हो जाते हैं। इस अपेक्षा से भी मतिज्ञान के अनन्त पर्याय हैं। अथवा केवलज्ञान द्वारा मतिज्ञान के अंश (टुकड़े) में किये जायें तो भी अनन्त अंश होते हैं। मतिज्ञान के सिवाय दूसरे पदार्थों के पर्याय ‘परपर्याय' कहलाते हैं। । मतिज्ञान के स्वपर्यायों का बोध कराने में तथा परपर्यायों से उन्हें भिन्न बतलाने में प्रतियोगी रूप से उनका
उपयोग है। इसलिए वे मतिज्ञान के परपर्याय कहलाते हैं। श्रतज्ञान के भी स्वपर्याय और परपर्याय अनन्त हैं
उनमें से श्रृतज्ञान के अक्षरश्रुत-अनक्षरश्रुत आदि भेद स्वपर्याय कहलाते हैं, जो अनन्त हैं। क्योंकि श्रुतज्ञान के । क्षयोपशम की विचित्रता के कारण तथा श्रुतज्ञान के विषयभूत ज्ञेय पदार्थ अनन्त होने से श्रुतज्ञान के । । (श्रुतानुसारी बोध के) भेद भी अनन्त हो जाते हैं। अथवा केवलज्ञान द्वारा श्रुतज्ञान के अनन्त अंश होते हैं, वे भी उसके स्वपर्याय ही हैं। श्रुत-ज्ञान से भिन्न पदार्थों के विशेष धर्म, श्रुतज्ञान के परपर्याय कहलाते हैं।
अवधिज्ञान के स्वपर्याय भी अनन्त हैं, क्योंकि उसके भवप्रत्यय और गुणप्रत्यय (क्षायोपशमिक), इन दो भेदों के कारण, उनके स्वामी देव और नारक तथा मनुष्य और तिर्यञ्च के, असंख्येय क्षेत्र और काल के भेद
से, अनन्त द्रव्य-पर्याय के भेद से एवं केवलज्ञान द्वारा उसके अनन्त अंश होने से अवधिज्ञान के अनन्त भेद म होते हैं। - इसी प्रकार इन्हीं कारणों से अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान व केवलज्ञान के भी अनन्त स्वपर्याय एवं परमें पर्याय होते हैं।
॥ अष्टम शतक : द्वितीय उद्देशक समाप्त ॥ Elaboration-In these seven aphorisms the sub-categories (paryaya) of fi knowledge (jnana) and there comparative details have been discussed.
Paryaya (sub-categories)—Qualitative categorization of different states or modes is called paryaya. This is of two types—(1) Sva-paryaya fi (own modes) and (2) Par-paryaya (relative modes). Due to unpredictable fi influence of destruction-cum-pacification (kshayopasham) of karmas Hi there are infinite sub-categories of Mati-jnana including avagraha
(acquisition of cursory knowledge). These are called Sva-paryaya (own 6 modes). As the number of knowable things is infinite there are infinite fi modes with respect to these things. Also if Mati-jnana is divided and fi sub-divided with the help of Keval-jnana (omniscience) the number fi would be infinite. There are infinite modes of things or states other than
Mati-jnana. These are useful in a comparative study of Mati-jnana to Eknow all there is to know about Mati-jnana. From this angle they are fi called par-paryaya (relative modes) of Mati-jnana. Shrut-jnana also has
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| अष्टम शतक : द्वितीय उद्देशक
(91)
Eighth Shatak : Second Lesson
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